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खण्ड 5 :
ज्योति-पुरूष

52. पवित्र मनुष्य

सरदार वल्लभभाई को गांधीजी के प्रति अत्यन्त भक्ति और प्रेम था। सन् 1935 में उनको भी गांधीजी के साथ सरवदा-जेल में रखा गया था । गांधीजी की तरह वे भी खाने-पीने लगे । वे चाय ले नहीं पाते थे । खजूर खाने लगे ।

बापू से पूछतेः ‘‘बापू, कितने खजूर लूँ ?’’

बापू कहतेः ‘‘पन्द्रह ।’’

‘‘बीस लें तो क्या हर्ज है ? पन्द्रह और बीस में कौन बडा़ फर्क है ?’’

‘‘तो फिर दस ही काफी हैं । दस और पन्द्रह में कितना फर्क है ?’’ यह कहकर गांधीजी मुक्त हँसी हँसते । गांधीजी की सेवा करने का सरदार को बडा़ शौक था । लेकिन गांधीजी स्नान करने आते, तभी कपडे़ भी धोकर लाते थे ! वह सेवा भी सरदार को मिलती नहीं थी । रात को सरदार उनके चरणों में मस्तक नवाकर ही सोने जाते ।

सन् 1932 में जाति पर आधारित चुनाव-पद्धति बदलने के लिए अस्पृश्यों को सवर्णों से अलग न कर देने के लिए गांधीजी ने जेल में आमरण अनशन शुरू किया । राजाजी को यरवदा लाया गया । राजाजी ने सरदार से कहाः ‘‘आप गांधीजी को उपवास न करने को कहिये ।’’

सरदार बोलेः ‘‘उनसे बढ़कर अधिक पवित्र मनुष्य मैंने कहीं देखा नहीं । उन्हें मैं क्या बताऊँ ? उनके लिए उनका अन्तर्यामी ही प्रमाण है ।’’

सरदार गांधीजी से कई बार कहतेः ‘‘हम साथ-साथ ही मरें । अपने पीछे मुझे छोड़ न देना ।’’ लेकिन बापू गये । सरदार को दुःख निगलकर सहयोगियों के साथ देश की गाडी़ को संकट से आगे ले जाना पडा़ ।