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खण्ड 5 :
ज्योति-पुरूष

51. माँ की सिखावन

संसार में एकदम निर्दोष बस्तु क्या है  ? सर्वत्र भले-बूरे का मिश्रण है । हमें भलाई ही देखनी चाहिए । और बुराई के प्रती दुर्लक्ष्य करना चाहिए । गांधीजी के पास तीन बन्दरोंवाला एक खिलौना था । एक बन्दर अपने हाथ से कान बन्द किये हुए था, दूसरा मुँह बन्द किये हुए था और तीसरा आँख बन्द किये हुए था । उन बन्दरों का कहना हैं कि बुरा न सुनो, बुरा न बोलो, बुरा न देखो । महात्माजी का यह आदर्श था ।

एक बार सरदार पटेल सेवाग्राम आये हुए थे । उन्होंने बापूजी से पूछाः ‘‘अखबारों में लिखा है कि लाँर्ड लिनलिथगो ने अपने भाषण की एक प्रति आपके पास पहले ही भेजी थी । उन्होंने वह क्यों भेजी थी  ? क्या इसलिए कि आप कोई सुझाव दें या रद्दोबदल सुझायें ?’’

गांधीजी ने कहाः ‘‘लिनलिथगो का वह भाषण तो झूठी बातों की गठरी है । उसमें रद्दोबदल करना या कोई सुझाव देना सम्भव ही नहीं है । वह भाषण एकदम फेंक देने योग्य है ।’’

सरदार हँसते हुए बोलेः ‘‘लेकिन सब देवताओं को खुश रखने का आपका ठाठ ही कुछ और है ।’’ फिर बोलेः ‘‘आपने जिस लेख में वाइसराय के बारे में दो-एक अच्छे शब्द इस्तेमाल किये हैं, उसी लेख में जयप्रकाश और समाजवाद के बारे में भी आपने अच्छे उदगार व्यक्त किये हैं ।’’

गांधीजी हँसते हुए बोलेः ‘‘हाँ, यह तो सच है, यह मेरी माताजी की सिखावन है । वह मुझे वैष्णव मन्दिरों में भी जाने को कहती, शिवाजी के मन्दिर में भी जाने को कहती। और मजे की बात कहूँ  ? जब मेरा विवाह हुआ, तब हम दोनों को उसने पूजा करने के लिए केवल सभी हिन्दू मन्दिरों में ही भेजा, सो नहीं, बल्कि दरगाह को भी ले गयी थी ।’’