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खण्ड 2 : राष्ट्रपिता
 

9. गुरूदेव और बापू

असहयोग-आन्दोलन के दिन थे । महात्माजी मानो आग बन गये थे । विदेशी कपडे़ की होली जलाते जा रहे थे । कहते थेः ‘‘सरकारी स्कूल-काँलेजों का बहिष्कार करो ।’’ गुरूदेव रवीन्द्रनाथ को महात्माजी के इस आन्दोलन में द्वेष की गंध आने लगी । उन्होंने बापू को इस बारे में लिखा । गांधीजी ने जवाब दियाः ‘‘विदेशी सरकार के प्रति द्वेष फैलाना तो मेरा धर्म है । लेकिन अकसर यह नाराजी और द्वेष व्यक्ति के प्रति हो जाता है । फिर सरकारी अधिकारियों की हत्या होती है । मैं वह द्वेष व्यक्ति से हटाकर वस्तु की ओर मोड़ता हूँ । मैं कहता हूँ कि विदेशी सरकारी अधिकारियों को मत मारो, यह विदेशी कपडा़ जलाओ । ऐसा कहकर मनुष्यों पर टूटनेवाली हिंसा को वस्तु की तरफ मोड़ता हूँ ।’’

गुरूदेव ने लिखाः राष्ट्र अब कहीं जगने लगा है । तो इस वक्त क्या द्वेष-बुद्धि के गाने सिखायेंगे ? प्रातःकाल में पक्षीगण मधुर-मधुर गाते हैं । गाते- गाते ऊँचे आकाश में उड़ते है । हम ऊँचे न उड़कर क्या क्षुद्र विषयों में और खराब बातों में ही रमते रहेंगे?’’

महात्माजी ने जवाब लिखाः ‘‘यह सही है कि प्रातःकाल पक्षी गाते-गाते ऊँचा उड़ते हैं, लेकिन पिछले दिन उनका पेट भरा होता है । पिछले दिन वे यदि भूखे रहते, तो मीठा गाते हुए ऊँचा थोडे़ ही उड़ते ।’’

रविबाबू ने पूछाः पाश्चात्य शिक्षा का क्यों बहिष्कार करते हैं ? राममोहन राय, लोकमान्य तिलक आदि महापुरूष क्या इसी पाश्चात्य शिक्षा की देन नहीं हैं?’’

बापू बोलेः ‘‘विदेशी भाषा के माध्यम से शिक्षा न लेनी पडीं होती, तो राममोहन राय, लोकमान्य आदि और भी महान् हुए होते । विदेशी शिक्षा के बावजूद उनकी असली बुद्धि मरी नहीं, क्योंकि वह अनन्त थी । क्या पुराने युग में कबीर और तुलसीदास जैसे रत्न पैदा नहीं हुए थे ? विदेशी शिक्षा के कारण देश की अपार हानि हुई है । राष्ट्र की आत्मा मारी गयी है । लोकमान्य आदि का मूल अंकुर ही बलवान था, तभी वह टिका ।’’