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खण्ड 2 : राष्ट्रपिता
 

8. मन की एकाग्रता की शक्ती

मन की एकाग्रता में बडी़ शक्ती है । एकलव्य ने मन एकाग्र करके ही धनुविद्दा सीखी । मन एकाग्र करने से बहुत सारी समस्याएँ हल हो जाती हैं । सूर्य की किरणों को बिल्लौरी काँच (लेन्स) के द्वारा केन्द्रित कर रूई पर रखो तो रूई जलने लगती है । बिखरी हुई किरणों में यह शक्ती नहीं होती । मन की शक्ति बिखरी रहे तो संसार में तुम्हें सिद्धि प्राप्त नहीं होगी ।

महापुरूषों में ऐसी एकाग्रती होती है । वे प्रयत्नपूर्वक ब्रह्मचर्य से उसे हासिल करते हैं । विवेकानन्द अमरीका गये हुए थे । वहाँ उन्होंने बुखार से तड़पती हुई एक स्त्री को देखा । वे उसके पास गये। उसका हाथ अपने हाथ में ले लिया और ध्यानस्थ होकर खडे़ रहे । फिर आँखे खोलीं और बोलेः ‘‘तुम्हारा बुखार उतर गया है ।’’ सचमुच बुखार उतर गया था । मन में ऐसी संकल्प-शक्ती, ऐसी इच्छा-शक्ती रहती है । इसलिए सदा दूसरों की भलाई ही सोचनी चाहिए । हमारे मन में पैदा होनेवाली विचारों का भी संसार पर प्रभाव पड़ता हैं । एकाग्र विचारों का तो और अधिक पड़ता है ।

आज गांधीजी की ऐसी ही एक कहानी सुनाता हूँ । सन् 1927 को बात है । बापूजी मद्रास गये थे । उन्हें पता चला कि ब्रिटेन के मजदूर नेता, मशहूर समाजवादी, श्री फेनर ब्राँकवे मद्रास के अस्पताल में बीमार हैं । महात्माजी की विशाल सहानुभूति चुप कैसे रहती ? ऐसे मामलों में वे बडे़ तत्पर थे । वे अस्पताल गये । फेनर ब्राँकवे बहुत ही बीमार थे, बेचैन थे ।

गांधीजी बोलेः ‘‘मैं आपसे मिलने आया हूँ ।’’

उन्होंने कहाः ‘‘आपकी बडी़ कृपा है ।’’

‘‘कृपा तो ईश्वर की है । आपको बहुत तकलीफ हो रही है ।’’

‘‘क्या कहूँ बडी़ बेचैनी महसूस होती है ।’’

‘‘आखिर क्यों ।’’

‘‘नींद बिलकुल नहीं आती । जरा नींद आ जाय, तो कितना अच्छा हो ।’’

‘‘आप ठीक कहते हैं । नींद तो रसायन है ।’’ यह कहकर गांधीजी उनके माथे पर प्रेम से हाथ रखकर खडे़ हुए, आँखे बन्द कर लीं । मन एकाग्र किया । क्या वे ईश्वर से प्रार्थना कर रहे थे ? या अपनी शान्ती उस तप्त मस्तक में उँडेल रहे थे? कुछ देर बाद आँखें खोलकर गांधीजी बोलेः

‘‘अब आपको नींद आयेगी । आराम होगा । आप सुखी होंगे ।’’

इतना कहकर गांधीजी लौट आये । ब्राँकवे ने एक पुस्तक लिखी है ।

उनका नाम ‘पचास वर्ष का समाजवादी जीवन का इतिहास’ है । उसमें वे लिखते हैः कितना आश्चर्य है । गांधीजी गये और कुछ ही देर में मुझे एकदम गहरी नींद आ गयी । नींद खुली, तो कितना स्फूर्ति लग रही थी ।’’

एकाग्रता में ऐसी अदभुत शक्ती है ।