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खण्ड 2 : राष्ट्रपिता
 

6. बापू की महानता

गांधीजी अखण्ड कर्मयोगी थे । उनका एक-एक क्षण सेवा में बीतता था । देश के लिए इस तरह सतत खपनेवाला दूसरा नहीं देखा-सुना । लेकिन महात्माजी को कर्म में आसत्तिक नहीं थी । कर्म को वे सिर पर चढ़ने नहीं देते थे । कर्म के लिए आडम्बर नहीं रचते थे ।

उन दिनों बोरसद तहसील में प्लेग फैला हुआ था । सरदार और उनके साथी सेवक बोरसद दौडे़ । सफाई का आन्दोलन शुरू हुआ । चूहे मारे जाने लगे । लेकिन अहिंसा के नाम पर लोग चूहे मारने को तैयार नहीं हो रहे थे । सरदार ने महात्माजी को लिखाः ‘‘लोगों से आप कहें कि वे चूहे मारें, वरना लोग मरने लगेंगे ।’’

महात्माजी ने लिखाः ‘‘छोटे-से मच्छर को भी मेरे ही समान जीने का हक है । लेकिन मानव का जीवन अपूर्ण है । होना तो यह चाहिए कि मच्छर होने ही न दें, घर में चूहे आयें ही नहीं । मैं क्या कहूँ चूहों को मारना चाहिए ।’’

महात्माजी लिखकर ही चुप नहीं रहे । स्वयं बारसद के शिविर में जा दाखिल हुए । चुहे मारने के आन्दोलन में तेजी आयी । प्लेग दूर होने लगा । कभी-कभी महात्माजी और सरदार साथ-साथ घूमने जाते । एक बार गांधीजी हँसते हुए सरदार से बोलेः ‘‘मेरी और तुम्हारी भेट न हुई होती, तो तुम जाने कहाँ बहते चले गये होते ?’’ यों दिन बीतने लगे ।

एक दिन सरदार वगैरह सभी लोग काम पर जाने लगे । गांधीजी ने कहाः ‘‘आप सब जा रहे हैं तो मुझे कुछ काम दे जाओ ।’’

‘‘आप हमें आशिर्वाद देने के लिए यहीं रहें । यही आपका काम है ।’’

‘‘खाली बैठे क्या करूँ ? मुझे एक बाज का खिलौना ही ला दो बजाता बैठा रहूँगा ।’’ सब हँस पडे़ और चले गये ।

काम का पहाड़ उठा लेनेवाले बापू विनोद में बाजे का खिलौना बजाने को भी तैयार थे । यह थी उनकी बाल-वृत्ती ।