खण्ड 2 :
राष्ट्रपिता
7. परावलम्बन नंगापन है |
गांधीजी ने स्वदेशी का अर्थ व्यापक किया था । बंग-भंग के समय ‘स्वदेशी’ का मन्त्र प्रकट हुआ । लेकिन महाराष्ट्र में सर्वजनिक काका ने उसमें 25-30 वर्ष पहले उसका नारा लगाया था । विदेशी मिल के कपडो़ के बजाय देशी मिलों का कपडा़ पहनना स्वेदेशी है । लेकिन गांधीजी ने कहा कि यहाँ की मिल के बने कपडो़ के बजाय गाँव के लोगों की बनायी हुई खादी पहनना अधिक स्वदेशी है, सौ प्रतिशत स्वदेशी है । जिस चीज से देहाती लोगों के हाथों में अधिक पैसा जायगा, वह अधिक स्वदेशी । देशी शक्कर खाना अच्छा है । लेकिन गुड़ खाकर देहात में अधिक पैसा बचता हो, तो गुड़ खाना अधिक स्वदेशी है । महात्माजी ने ‘स्वदेशी’ में अधिक अर्थ भर दिया । शब्दों के अर्थ युग-युग से बढ़ते जाते हैं । पहले हम ‘स्वतन्त्रता’ का नाम लेते थे । स्वतन्त्रता यानी विदेशी सत्ता को हटाना । लेकिन उतना अर्थ काफी नहीं है । शोषण न हो, गरीबों का जीवन सुखी हो, यह आज स्वतन्त्रता का अर्थ हुआ है ।
उन
दिनों शायद महात्माजी बारडोली तहसील में थे । उनके दर्शन के लिए हजारों
स्त्री-पुरूष आते और पावन होकर जाते थे । एक दिन महात्माजी की सेवा में
कोई भेट ले आया । क्या थी वह भेट ? एक थाली रूमाल से ढँकी हुई थी । एक
महिला ने महात्माजी के आगे वह थाली रखी । थाली में क्या था ? पूरे
रूपये भरे थे । रूपयों से भरी थाली गांधीजी के सामने रखकर महिला ने
प्रणाम किया और भक्ती-भाव से खडी़ रही । |