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11. द्वितीय गोलमेज सम्मेलन

गाँधीजी अकेले इंग्लैंड नहीं गये। उनके साथ पंडित मदन मोहन मालवीय, सरोजिनी नायडू, उनका सबसे छोटा लड़का देवदास, उनकी अंग्रेज शिष्या मैडलिन स्लेड, जिन्होंने साबरमती आश्रम में रहने के पीचात अपना नाम मीरा बेन रख लिया था एवं उनके सेक्रेटरी भी थे।

सदा की तरह गाँधीजी सादा जीवन बिताना चाहते थे। उन्होंने आदेश दिया था कि वह और उनके साथी सबसे नीची श्रेणी में डेक यात्रियों की तरह यात्रा करेंगे। जब उन्हें पता चला कि उनके साथी कितना सामान साथ लाये हैं तो उन्होंने सात ट्रंक और सूटकेस अदन से वापस भेज दिये। बम्बई के बाद जहाज पहली बार अदन में ही ठहरा था।

गाँधीजी के अनुयायी उनकी बकरी भी साथ ले गए क्योंकि बकरी का दूध उनके भोजन का आवश्यक अंग था। जहाज पर गाँधीजी अधिक समय डेक पर कातते, लिखते, प्रार्थना करते एवं अन्य यात्रियों से बातें करते या उनके बच्चों के साथ खेलते।

वह लन्दन 12 सितम्बर को पहुँच गये। ब्रिटिश लोग गाँधीजी को खादी पहने, डंडा लिए, अपनी बकरी और अनुयायिओं के साथ जहाज से उतरते देख, विस्मित हो गये। उन्हें इस बात पर आश्चर्य हो रहा था कि ऐसा फकीर-सा व्यक्ति उनके प्रधानमंत्री से बात करने आया है।

समाचारपत्रों में "भारत के मिकी माउसू के कार्टून और ढेर सारे फोटो भी निकले। जहां भी गाँधीजी जाते, पत्रकार उनका पीछा करते। इससे पहले उन्होंने ऐसा नेता नहीं देखा था, ऐसा आदमी जिसे बड़ा बनने के लिये सरकार की शक्ति नहीं चाहिये थी। उनकी सरकारी तौर या औपचारिक रूप से कोई स्थिति नहीं थी लेकिन फिर भी लोगों ने स्वेच्छा से और अंधभक्तों की तरह उनके कहने पर जेलें भर दी थप। दुख और पीड़ा, यहां तक कि मृत्यु से भी वे नहीं डरे थे।

गाँधीजी कुमारी मूरियल लेस्टर, जिन्होंने सन् 1926 में उनके दर्शन किये थे, के यहां किंग्सले हाल में ठहरे थे। यह स्थान ईस्ट एंड में है जहां गरीब लोग रहते हैं।

यह स्थान सेंट जेम्स पैलेस से, जहां गोलमेज़ सम्मेलन हो रहा था, तथा शहर के मध्य भाग से 8 किलोमीटर दूर था। उनके दोस्तों ने सलाह दी कि यदि वह किसी निकट के होटल में ठहर जायें तो सोने और काम करने के लिये कई घंटे बच जायेंगे। लेकिन वह इतना पैसा अपने आराम पर खर्च नहीं करना चाहते थे। न ही वह अपने अमीर अंग्रेज या हिन्दुस्तानी दोस्तों के पास रहना चाहते थे। उन्होंने कहा कि उन्हें अपनी तरह के गरीब लोगों में रहना अच्छा लगता है। वह केवल इस बात से सहमत हुए कि 88 नाइटसब्रिज में एक छोटा सा आफिस खोल लें जिससे जो उनसे भेंट करना चाहते हैं, उन्हें इतनी दूर ईस्ट एंड की गन्दी बस्ती में न आना पड़े।

सुबह के समय गाँधीजी गन्दी बस्ती की गलियों में पैदल जाते और पुरुष व महिलायें मुस्करा कर उनका अभिवादन करते। गाँधीजी उनसे बातें करते और कइयों के घर भी गये। बच्चे उनको घेर लेते। एक ने शैतानी से पूछा, "अरे गाँधी, तुम्हारी पतलून कहां है?" गाँधीजी हंसने लगे और बच्चे भी हंस पड़े।

ब्रिटेन के युद्धकालीन प्रधानमंत्री लायड जॉर्ज ने उन्हें अपने फार्म पर निमंत्रित किया। उन्होंने वहां तीन घंटे बिताये।
हंसोड़ अभिनेता चार्ली चैपलिन उनसे मिलना चाहता था। गाँधीजी ने कभी फिल्म नहीं देखी थी और उन्हें अभिनेताओं में कोई रुचि नहीं थी। लेकिन यह जानने पर कि चैपलिन ईस्ट एंड के एक गरीब परिवार में जन्मा था, वह उससे मिल कर प्रस़ हुए।

अन्य प्रसिद्ध व्यक्ति जो उनसे मिले, उनमें जनरल स्मट्स, मारिया मौंटेसरी और जॉर्ज बनार्ड शा भी थे। लार्ड अर्विन का गाँधीजी के भारत से चलने से पहले ही तबादला हो गया था। उनके स्थान पर लार्ड विलिंगडन वाइसराय बन कर आये थे। वह भी गाँधीजी से मिले।

गाँधीजी ने कई स्कूल देखे और लन्दन, कैम्बिरज और आक्सफोर्ड विीवविद्यालय भी देखने गये। वह लंकाशायर जाकर कपड़ा मजदूरों से मिले, जो भारत में विदेशी कपड़े के बहिष्कार के कारण अब खाली बैठे थे। गाँधीजी ने बताया कि किस कारण उन्हें बहिष्कार करना पड़ा। उन्होंने इतने आत्मविीवास और नम्रता और सीधे मन से बात की कि उन लोगों ने, जिन्हें उनके कारण खाली बैठना पड़ा था, गाँधीजी का स्वागत किया। उन्होंने गाँधीजी से कहा कि वे उनके स्थान पर होते तो वैसा ही करते। यह अंग्रेज लोगों के बड़प्पन और न्यायप्रियता का चिह्न था कि वे दूसरे पक्ष का दृष्टिकोण समझते थे चाहे इसमें स्वयं उन्हें कितना दुख झेलना पड़ रहा था।

सम्राट जार्ज पंचम को गोलमेज सम्मेलन के प्रतिनिधियों को दिए जाने वाले स्वागत-समारोह में गाँधीजी को शामिल करने में हिचक हो रही थी। यह भोज बकिंघम पैलेस में होना था।

जब भारत के सेक्रेटरी आफ स्टेट सेम्युल होर ने सम्राट से कहा कि हम गाँधीजी का नाम इस भोज में आने वाले लोगों की लिस्ट में से निकाल नहीं सकते, तो सम्राट ने कहा, "क्या ऐसे विद्रौsही फकीर को महल में बुलाऊं जो मेरे वफादार अफसरों पर हुए सारे आक्रमणों के पीछे रहा है?"

"जी, ऐसा ही करना होगा। उसे निमंत्रित न करना भारी गलती होगी, महामहिम," सर सैम्युल ने उत्तर दिया।

तब बादशाह ने कहा कि वह एक ऐसे आदमी को राजमहल में आमंत्रित नहीं कर सकते जो ठीक से कपड़े नहीं पहनता।

सर सैम्युल ने कहा, "महामहिम सम्राट, आप नहीं, वह सर्दी महसूस करेगा। इसलिये चिन्ता कैसी?"

महात्मा गाँधी को निमंत्रण मिला और वह अपनी खादी की धोती और शाल में ही बकिंघम पैलेस गये। भोज के अन्त में सम्राट ने कहा, "मिस्टर गाँधी, याद रखिये, मैं अपने साम्राज्य पर आक्रमण नहीं सहूंगा।"

गाँधीजी ने नम्रता से कहा, "मैं इस समय आपके महल में राजनीति पर बहस नहीं करना चाहता, जहां मैंने अभी आपका आतिथ्य स्वीकार किया है।"

बाद में संवाददाताओं द्वारा पूछने पर कि क्या उनको बकिंघम पैलेस में ठंड नहीं लगी, तो गाँधीजी ने हंस कर कहा, "नहीं, महामहिम ने हम दोनों के लिये काफी कपड़े पहन रखे थे।"

गाँधीजी इस समय ब्रिटिश जनता की नज़रों में भारत के उद्देश्य को उचित और न्यायसंगत प्रमाणित करने की ओर अधिक ध्यान दे रहे थे। उनका ध्यान गोलमेज़ सम्मेलन की ओर इतना नहीं था। उन्होंने कुछ श्रोताओं से कहा, "मुझे लगता है कि मेरा काम सम्मेलन से बाहर है। मेरे लिये यही असली गोलमेज़ सम्मेलन है। जो बीज मैं इस समय बो रहा हूं, हो सकता है उसके कारण ब्रिटिश लोगों का रवैया हमारी तरफ नरम पड़ जाये। जिससे मनुष्यों के प्रति निष्ठुरता न बरती जाये।

गाँधीजी ने लेक्चर, भाषण, प्रेस के साथ इन्टरव्यू आदि दिये। यात्रा पर गये, लोगों से मिले और ढेरों पत्रों के उत्तर दिये। इन सब कामों के कारण वे दिन के 21 घंटे व्यस्त रहते जिससे केवल तीन घंटे सोने के लिये बचते। उनका ध्येय था ब्रिटिश लोगों और संसार को विीवास दिलाना कि भारत को स्वाधीनता मिलनी ही चाहिये। उसे इसकी उतनी ही ज़रूरत है जितनी किसी अन्य देश को। इस दौरान उनके कई दोस्त बन गये और कइयों को भारत के उद्देश्य से सहानुभूति हो गई।

उन्होंने एक रेडियो भाषण में अमरीकी लोगों से कहा कि संसार का ध्यान भारत की ओर आकर्षित हुआ है। क्योंकि स्वतंत्रता पाने के लिये हमने जिस रास्ते को अपनाया है वह अनोखा है। आज तक दूसरे राष्ट्र बर्बरों की तरह लड़े हैं। उन्होंने अपने शत्रुओं से बदला लिया हैकृ भारत में हमने इस प्रक्रिया को उल्टा करने का प्रयत्न किया है। यदि ज़रूरत हुई तो मैं युगों तक प्रतीक्षा करने को तैयार हूं बजाय इसके कि मैं अपने देश के लिये खून बहा कर स्वतंत्रता प्राप्त करूं। मेरे ख्याल मेंकृ संसार रक्तपात से काफी दुखी है। दुनिया इस रक्तपात से दूर हटने का तरीका ढूंढ़ रही है और मुझे विीवास है कि शायद दुनिया को मार्ग दिखाने का कार्य इस प्राचीन ऋषिभूमि भारत द्वारा ही होना है।"

उन्होंने इन शब्दों से भाषण समाप्त किया, "क्या मैं लाखों अधभूखे लोगों की तरफ से संसार की आत्मा से अपील करूं कि उनके बचाव के लिये आगे आयें, जो लोग स्वाधीनता पाने के लालायित हैं?"

फिर भी ब्रिटिश भारत को स्वतंत्रता नहीं देना चाहते थे। उनके विचार से गोलमेज़ सम्मेलन का कार्य भारत के लिये संविधान बनाना था। 112 प्रतिनिधियों में से कुछ ने ही गाँधीजी का पक्ष लिया था और इस बात का विरोध किया था कि स्थिति यथापूर्व रहे।

मुसलमानों को उन्होंने पश्थक मताधिकार देने का निश्चय किया। अछूतों ने भी पृथक मताधिकार की मांग करनी आरम्भ की थी। इस सबसे सामन्तशाही और विभाजक शक्तियों को बल मिल रहा था।

गोलमेज़ सम्मेलन असफल रहा। गाँधीजी 5 दिसम्बर को इंग्लैंड से चल पड़े। उन्हें बड़ी निराशा हुई कि वह हिन्दू-मुसलमानों के बीच की खाई पाटने में असफल रहे थे और भारत को स्वाधीनता भी नहीं दी गई थी।

गाँधीजी फ्रांस, स्विट्जरलैंड और इटली होते हुए लौटे और वहां अनेक महत्वपूर्ण व्यक्तियों से मिले। बाद में इटली में ब्रिंदसी से भारत के लिए पानी के जहाज से रवाना हो गए।

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