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4. तेज

जैसे आकाश, हवा, पानी आदि तत्त्वोंके बिना मनुष्यका निर्वाह नहीं हो सकता, वैसे ही तेज अर्थात् प्रकाशके बिना भी नहीं हो सकता । प्रकाश-मात्र सूर्यसे मिलता है । सूर्य नहीं हो तो न तो हमें गर्मी मिल सके, न प्रकाश । इस प्रकाशका हम पूरा उपयोग नहीं करते, इसलिए पूर्ण आरोग्यका भी हम अनुभव नहीं करते । जैसे हम पानीका स्नान करके स़ाफ होते हैं, वैसे ही सूर्य-स्नान करके भी हम स़ाफ और तन्दुरुस्त हो सकते हैं । दुर्बल मनुष्य या जिसका ख़ून सूख गया हो, वह यदि प्राप्तकालके सूर्यकी किरणे नंगे शरीर पर ले, तो उसके चेहरेका फीकापन और दुर्बलता दूर हो जायगी और पाचन-क्रिया यदि मंदहो तो वह जाग्रत हो जायगी । सवेरे जब धूप ज्यादा न चढी हो, उस वक्त यह स्नान करना चाहिये । जिसे नंगे शरीर लेटने या बैठनेमें सर्दी लगे, वह आवश्यक कपड़े लेटे या बैठे और जैसे-जैसे शरीर सहन करता जाय वैसे-वैसे कपड़े हटाता जाय । हम नंगे बदन धूपमें टहल भी सकते हैं । कोई देख न सके ऐसी जगह ढूढकर यह क्रिया की जा सकती है । अगर ऐसी सहूलियत पैदा करनेके लिए दूर जाना पडे और इतना समय न हो तो बारीक लंगोटीसे गुह्य भागोंको ढंककर सूर्य-स्नान लिया जा सकता है ।

इस प्रकार सूर्य-स्नान लेनेसे बहुतसे लोगोंको लाभ हुआ है । क्षय रोगमें इसका खूब उपयोग होता है । सूर्य-स्नान अब केवल नैसर्गिक उपचारकोंका विषय नहीं रहा । डॉक्टरोंकी देखरेखके नीचे ऐसे मकान बनाये गये हैं । जहां ठंडी हवामें कांचकी ओटनें सूर्य-किरण सेवन किया जा सकता है ।

कई बार फोड़ेका घाव भरता ही नहीं है । पर असे सूर्य-स्नान दिया जाय तो वह भर जाता है ।

पसीना लानेके लिए मैंने रोगियोंको ग्यारह बजेकी जलती धूपमें सुलाया है । इससे रोगी पसीनेसे तरबतर हो जाता है । इतनी तेज धूपमें सुलानेके लिए रोगीके सिर पर मिट्टीकी पट्टी रखनी चाहिय । उस पर केलेके या दूसरे बड़े पत्ते रखने चाहिये, जिससे रोगीका सिर ठंडा और सुरक्षित रहे । सिर पर तेज धूप कभी नहीं लेनी चाहिये ।

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