| | |

3. तैयारी

गाँधीजी सविनय अवज्ञा आन्दोलन की तैयारी करने लगे। और जैसे-जैसे 11 मार्च निकट आने लगी भारत उत्तेजना से आंदोलित हो उठा।

गाँधीजी ने समझाया कि सत्याग्रह से उनका मतलब क्या है और सत्याग्रही को क्या करना होगा। एक सत्याग्रही सब मनुष्यों को अपना भाई मानता है। उसे यह विश्वास होता है कि प्रेम और स्वयं आत्म पीड़न से मेरे प्रतिपक्षी के हृदय में भी परिवर्तन अवश्य होगा। उसे यह पूर्ण विश्वास होता है कि प्रेम की शक्ति इतनी महान है कि वह कड़े से कड़े पत्थर दिल को भी पिघला देती है।

सत्याग्रह शांति का मार्ग है और किसी के दिल में वैसी कड़वाहट उत्प़ नहीं करता जैसी कि हिंसा।

गाँधीजी ने कहा कि कायरता और प्रेम वैसे ही साथ-साथ नहीं रहते जैसे जल और अग्नि। एक सत्याग्रही में इतना साहस और प्रेम होना चाहिये कि वह हिंसा का सामना कर सके और फिर भी अपने प्रतिपक्षी से प्रेम करे और उसके हृदय-परिवर्तन का प्रयत्न करे। सत्याग्रही का भय रहित होना और सत्य में अटल विश्वास उसको इतना साहस देता है कि वह किसी भी बुराई को ललकार सकता है चाहे उसके रास्ते में कितनी ही बाधायें क्यों न हों। सत्याग्रही अपने प्रतिपक्षी की सहज बुद्धि एवं नैतिकता को शब्दों, पवित्रता, विनय, ईमानदारी और आत्म पीड़न द्वारा प्रभावित करता है।

गाँधीजी का विश्वास था कि ध्येय और साधन दोनों में ही पवित्रता होनी चाहिये। इस विचार के आधार पर गाँधीजी ने यंग इंडिया में सत्याग्रहियों के लिये नियम प्रकाशित किये। इनमें से कुछ नीचे दिये जाते हैः

  1. सत्याग्रही, जो असैनिक प्रतिरोधी है, प्रतिपक्षी के प्रति गुस्सा नहीं करेगा।

  2. वह प्रतिपक्षी के गुस्से का सामना अहिंसा से करेगा।

  3. वह अपने प्रतिपक्षी के हमले को सहेगा और पलटकर हमला नहीं करेगा।

  4. जब कोई अधिकारी उसे गिरफ्तार करना चाहेगा तो वह गिरफ्तार हो जायेगा।

  5. असैनिक प्रतिरोधी अपने प्रतिपक्षी का अपमान भी नहीं करेगा।

  6. असैनिक प्रतिरोधी यूनियन जैक को सलाम नहीं करेगा और न ही उसका अपमान करेगा।

  7. आन्दोलन के दौरान यदि कोई अन्य व्यक्ति किसी सरकारी अधिकारी का अपमान या उस पर हमला करता है तो सत्याग्रही को उसे बचाना होगा।

गाँधीजी ने उन सत्याग्रहियों के लिए भी आचार संहिता बना दी जिन्हें गिरफ्तार करके जेल भेज दिया गया था। कैदी के तौर पर एक सत्याग्रही जेल के अधिकारियों के साथ शिष्ट बर्ताव करेगा और जेल के अनुशासन को मानेगा। सत्याग्रही अन्य साधारण कैदियों से स्वयं को ऊंचा नहीं समझेगा और न ही अपने प्रति विशेष बर्ताव की मांग करेगा। उसे जेल का भोजन, यदि सफाई से बना हो और साफ बर्तनों में परोसा जाये तो खाना होगा, यदि भोजन गन्दे बर्तनों में और गाली-गलौज के साथ दिया जाये तो सत्याग्रही उसे खाने से मना कर देगा।

जेल जाने पर या किसी तरह अपना जीवन गंवाने पर सत्याग्रही को अपने परिवार के लिये भरण-भत्ते की आशा नहीं करनी चाहिये। सत्याग्रही साम्प्रदायिक दंगों में कभी नहीं उलझेगा। ऐसे झगड़े के समय वह किसी का पक्ष नहीं लेगा और न्याय की बात करेगा।

यंग इंडिया में नमक कानून तोड़ने के लिये मिल सकने वाले दंड के बारे में बताया गया था जिससे सत्याग्रही को पता लगे कि उसे कैसा दण्ड मिलेगा।

महात्मा गाँधीजी ने स्वयं के लिये बड़े उच्च आचार-विचार का स्तर रखा था और आशा की थी कि उनके अनुयायी भी इसी लीक पर चलेंगे। वह भारत के लिये सत्ता चाहते थे जिससे जन साधारण के जीवन में सुधार किया जा सके। लेकिन उन्हें पूरा विश्वास था कि यदि सत्ता लेने के साधन गलत हों तो वह इस सत्ता और अधिकार को भी नहीं चाहते थे। इसलिये सत्याग्रही का आचरण उच्च स्तर का हो और उसे सत्य और अहिंसा में अटल विश्वास होना चाहिये।

सत्याग्रह के नाना तरीके अपनाये जा सकते थे जैसे उपवास, अहिंसा, पिकेटिंग (धरना), असहयोग, सविनय अवज्ञा और कानूनी दण्ड जिसे सत्याग्रही सहने के लिये तत्पर रहेगा। सत्याग्रही के साथ चाहे कैसा भी बर्ताव हो वह अहिंसा बरतेगा और प्रतिपक्षी के प्रति घृणा नहीं अपनायेगा।

गाँधीजी इस बात पर बल देते थे कि सब सत्याग्रही खद्दर पहनें। महात्मा गाँधी का इरादा था कि समुद्र तक पैदल जा कर वे वहां पड़ा नमक उठायें। समुद्र तट पर यह सफेद चादर की तरह फैला हुआ रहता है। यह समुद्र का उपहार था जिसे उठाना और इस्तेमाल करना आम लोगों को मना था।

नमक सत्याग्रह कहां से आरम्भ हो, उस जगह का चुनाव करने में कई दिन लगे। तीन सदस्यों की एक चयन समिति बनाई गई जिसने गुजरात के समुद्र तट पर कई स्थानों को देखा। सूरत जिले में कई जगहों पर गये और सोच विचार किया गया। फिर इस काम के लिये डांडी को, जो नवसारी के निकट है, चुना गया। इसमें एक कमी थी। इस सुदूरवर्ती गांव में पीने के पानी की कमी थी। लेकिन नवसारी के लोगों ने वायदा किया कि वे टैंकरों द्वारा वहां पीने का काफी पानी भेज देंगे। तीन सदस्यों की समिति ने इस गांव की सिफारिश सरदार पटेल से, जो स्वतंत्रता आन्दोलने में गाँधीजी के साथी थे, की और उन्होंने गाँधीजी से इसकी मंजूरी ले ली।

इस दौरान अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी भी इस आन्दोलन के लिये तैयारी कर रही थी। स्वयंसेवकों को भरती करके उन्हें भीड़भाड़ के नियंत्रण की शिक्षा दी जा रही थी। वे बिना शस्त्राsं के प्रतिदिन परेड करते थे।

यद्यपि गाँधीजी ने मार्च की तारीख की घोषणा नहीं की थी फिर भी लोग अहमदाबाद आने लगे थे, क्योंकि वे जानते थे कि तिथि की घोषणा में अब ज्यादा देर नहीं हो सकती। सत्याग्रह का समाचार पूरे संसार में फैल चुका था। भारतीय और विदेशी संवाददाता अहमदाबाद और साबरमती आश्रम में जमा हो गये थे।

एक जनवरी, 1930 को एक विदेशी समाचार पत्र ने लिखा था, 'इंग्लैंड और भारत में यह संकट अभी आम बातचीत का विषय नहीं है और भारत में लाखों लोग ऐसे हैं जिन्हें इस बारे में कोई जानकारी नहीं है।"

लेकिन मार्च मास आते-आते इंग्लैंड और भारत एवं बाकी दुनिया जान चुकी थी कि भारत में क्या हो रहा है।

'कल्पना करो यदि मैंने यह घोषणा की होती कि मैं हिंसक आन्दोलन आरम्भ करने वाला हूं तो क्या सरकार मुझे अभी तक छोड़ देती। क्या आप इतिहास से ऐसा एक भी उदाहरण दिखा सकते हैं कि किसी सरकार ने अपनी सत्ता के विरुद्ध एक दिन के लिये भी खुली बगावत को सहन किया हो? लेकिन आप जानते हैं यहां सरकार उलझन में है। और आप यहां इसलिए आये हैं क्योंकि आप स्वयं अपनी मर्जी से जेल जाने के विचार से परिचित हो चुके हैं।"

लोग ध्यान से सुन रहे थे और गाँधीजी कहते रहे, 'मैं आपसे एक कदम आगे जाने के लिये कहता हूं। यदि भारत के लाखों गांवों में से प्रत्येक गांव में से दस आदमी आगे आयें और नमक बनाएं और नमक कानून का उल्लंघन करें तो आपके विचार में यह सरकार क्या कर सकती है? बहुत ही क्रूर और निरंकुश तानाशाह भी शान्तिपूर्ण ढंग से विरोध करने वालों के समूहों को तोप के मुँह पर नहीं रख सकता। यदि आप केवल अपने को थोड़ा भी सक्रिय कर लें, मैं विश्वास दिलाता हूं कि हम बहुत ही थोड़े समय में इस सरकार को थका देंगे ।

'मुझे आपसे पैसा नहीं चाहियेकृ मैं चाहता हूं कि आप साहस से काम लें और इस आन्दोलन में शामिल हों। भगवान आपको इस आंदोलन में शामिल होने का साहस दे।"

| | |