| | |
 

अहिंसावादी गांधीजी

अहिंसा का प्रतिपादन महात्माजी ने बडे मौलिक तौर पर किया था। उसके द्वारा उन्होंने संसार को दिखा दिया कि आजकल के युग में स्वेच्छा पूर्ण कष्ट सहन के बल पर किए गए सामूहिक, नैतिक प्रतिरोध अर्थात् सत्याग्रह द्वारा युक की हिंसा पर भी विजय पाई जा सकती है। उनका कहना था कि आपका आचरण न्यायपूर्ण और सत्य हो। अत्याचारी के प्रति अगर आप नम्र एवं दृढ हो पर उसके संबंध में अपने कदम में कोई कलुषता न रखें तो अत्याचारी की उठी हुई तलवार अपने आप झुक जायेगी।

दक्षिण अफ्रीका में उन्हें इस दिशा में गौरवपूर्ण विजय मिली। ट्रंसवाल में जब उन्होंने ड्रेकसंवर्ग की पहाडियों को पार करके अपनी सत्याग्रही फौज का संचालन किया, तो दक्षिण अफ्रीका के तानाशाह भारतीयों के दुश्मन जनरल स्मट्स ने उनकी वे सब शर्ते मान ली, जो उन्होंने पेश की थी। इतना ही नहप जनरल स्मट्स ने यह भी स्वीकार किया कि नैतिक लडाई का तरीका जिसमें कोई भी हिंसात्मक हथियार काम में नहप लाया गया, ऐसा है जिसका सामना नहप किया जा सकता।

गांधीजी का अहिंसा अस्त्र ऐसा अस्त्र था, जिसे गरीबगअमीर, दुर्बलगमजबूत सभी चला सकते थे। गांधीजी के इस अहिंसा अस्त्र से ही सर्व शक्तिमान ब्रिटिश सरकार उनके सामने झुक गई। तोप और गोली का निशाना खाकर हिंदुस्तान का सत्याग्रही अहिंसक अटल रहा।