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9. तम्बाकू

तम्बाकूने तो ग़जब ही ढ़ाया है । इसके पंजेसे कोई भाग्यसे ही छूटता है । सारा जगत एक या दूसरे रूपमें तम्बाकूका सेवन करता है । टॉल्स्टॉयने इसे व्यसनोंमे सबसे खराब व्यसन माना है । ऋषिका यह वचन ध्यान देने लायक है । उन्होंने तम्बाकू और शराब दोनोंका काफी अनुभव किया था और दोनोंकी हानियां वे स्वयं जानते थे । ऐसा होते हुए भी मुझे यह स्वीकार करना चाहिए कि शराब और अफीमकी तरह तम्बाकूके दुष्परिणाम प्रत्यक्ष रूपसे मैं स्वयं बता नहीं सकता । इतना जरूर कह सकता हूँ कि इसका एक भी फ़ायदा मैं नहीं जानता । जो इसका सेवन करते हैं उनके सिर इसका खर्च भी खूब पडता है । एक अंग्रेज मजिस्ट्रेट तम्बाकू पर हर महीने पाँच पौंड अर्थात् 75 रूपये खर्च करता था । उसका महीनेका वेतन था 25 पौंड । दूसरे शब्दोंमे, अपनी कमाईका पांचवाँ  भाग अर्थात्  बीस प्रतिशत वह धुंमे ऊडा देता था ।

तम्बाकू पीनेवालेकी विवेक-शक्ति इतनी मन्द पड़ जाती है कि वह तम्बाकू पीते समय अपने पड़ोसीका विचार नहीं करता । रेलगांडीमे मुसाफिरी करनेवालेंको इस च़ीजका क़ाफी अनुभव होता है । जो तम्बाकू नहीं पीते, वे तम्बाकूका धुआं सहन ही नहीं कर सकते । मगर पीनेवाला अकसर इस बातका विचार नहीं करता कि पासवालेकों क्या लगता होगा । इसके उपरान्त तम्बाकू पीनेवालोंको अकसर थूकना पड़ता है और वे बिना संकोच काही भी थूक देते हैं ।

तम्बाकू पीनेवालेके मुंहसे एक तरहकी असह्य बदबू निकलती है । संभव है कि तम्बाकू पीनेवालेकी सूक्ष्म भावनायें मर जाती हें । और यह भी संभव है कि उन्हें मारनेके लिए ही मनुष्यने तम्बाकू पीना शुरू किया हो । इसमें तो शक है ही नहीं कि तम्बाकू पीनेसे मनुष्यको एक तरहका नशा चढ़ जाता है और उस नशेमें वह अपनी चिन्ताओं और दुःखोंको भूल जाता है । टॉल्स्टॉय अपने एक उपन्यासमें एक पात्रसे भयंकर काम करवाते हैं । यह काम करनेसे पहले उसे शराब पिलवाते हैं । इस पात्रको एक भयंकर खून करना है । मगर शराबके नशेमें भी उसे खून करने में संकोच होता है । विचार करते करते वह सिगार जलाता है और धुआं उड़ाता है । धुंको ऊपर चढते हुए वह देखता है और देखते-देखते बोल उठता है- ‘‘मैं कैसा डरपोक हूँ ! खून करना यदि कर्तव्य है, तो फिर संकोच क्यों? चल उठ, और अपना काम कर  ।'' इस तरह उसकी धूम्रवश विचलित बनी बुध्दि उससे एक निर्दोष आदमीका खून करवाती है । मैं जानता हूँ कि इस दलीलका बहुत असर नहीं पड़ सकता । तम्बाकू  पीनेवाले सबके सब पापी नहीं होते । यह कहा जा सकता है कि करोड़ों तम्बाकू पीनेवाले लोग आपना जीवन सामान्यत सरलतासे व्यतीत  करते हैं । तो भी जो विचारशील हैं उन्हें  उपर्यंक्त दृष्टान्त पर मनन करना चाहिए । टॉल्स्टॉयके कहनेका सार यह है कि तम्बाकूके नशेमें मनुष्य छोटे-छोटे पाप किया किया करता है । उसकी विवेकबुध्दि मन्द पड़ जाती है ।

हिन्दुस्तानमें  हम लोग तम्बाकू केवल पीते ही नहीं, सूंघते भी हैं और जरदेके रूपमें खाते भी हैं । कुछ लोग मानते हैं कि तम्बाकू सूंघनेसे फायदा होता है । वैद्य और हकीमकी सलाहसे वे तम्बाकू सूघते हैं । मेरा मत यह है कि इसकी कोई आवश्यकता नहीं है । तन्दुरुस्त मनुष्योंको ऐसी च़ीजोंकी  आवश्यकता होनी ही नहीं चाहिए । जरदा खानेवालोंको तो कहना ही क्या? तम्बाकू पीना, सूंघना और खाना, इन तीनोंमें तम्बाकू खाना सबसे गन्दी चीज है । इसमें जो गुण माना जाता है, वह केवल भ्रम हैं ।

हम लोगोंमें एक कहावत प्रचलित है कि खानेवालाका कोना, सूंघनेवालेका कपडा और पीनेवालेका घर ये तीनों समान हैं । जरदा खानेवाला सावधान हो तो थूकदान रखता है, मगर अधिकांश लोग अपने घरके कोनोंमें और दिवारों पर थूकते  शरमाते नहीं हैं । पीनेवाले लोग धुंसे अपना घर भर देते हैं और नसवार सूंघनेवाले अपने कपडे बिगाड़ते हैं । कोई-कोई लोग अपने पास रूमाल रखते हैं, पर वह अपवादरूप है । आरोग्यका पुजारी दृढ़ निश्चय करके सब व्यसनोंकी गुलामीसे छूट जायेगा । बहुतोंको इनमेंसे एक या दो या तीनों व्यसनोंकी गुलामीसे छूट जायेगा । बहुतोंको इनमेंसे एक या दो या तीनों व्यसन लगे होते हैं । इसलिए उन्हें इससे घृणा नहीं होती । मगर शान्त चित्तसे विचार किया जाय, तो तम्बाकू फूंकनेकी क्रियामें या लगभग सारा दिन जरदे या पानके बीड़े वगैरासे गाल भर रखनेमें या नसवारकी डिबिया खोलकर सूंघते रहनेमें कोई शोभा नहीं है । ये तीनों व्यसन गंदे है ।

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