52. आत्मबल |
आज दुनियामें मार-धाड़ करनेवालोंका बडा़ जोर है । वे कहते हैः 'इसमें हमें सलाम नहीं किया, इसे मार डालेंगे।' गांधीजी हाथ उठाकर और पुकार-पुकारकर कहते हैः 'अय भारतवासियो, तुम न तो इस कोलाहलमें शामिल होओ, न इससे डरकर भागो ।' तुम अपनी अहिंसा पर डटे रहो । जब सारी दुनिया लड़-झगड़कर थक जायेगी, तो हमींसे अहिंसा सीखने आयेगी । कोई अपने मनमें यह डर न रक्खो कि अगर हम अहिंसाका पालन करेंगे, तो सब मिलकर हमें मार डालेंगे । तुम अहिंसाको पहचानते नहीं, इसी कारण उससे डरा करते हो । अहिंसा वह चीज है, जिससे दुश्मन भी दोस्त बन जाते हैं । दुनियाके लोगोंको गांधीजीके इस उपदेश पर विश्वास नहीं बैठता । उन्हें इसकी सच्चाईका इतमीनान नहीं होता । अगर किसी देशके पास एक लाख फौज है, तो दूसरा पाँच लाख रखता है, और तीसरा दस लाख । एक देशके पास सौ लडा़कू जहाज हैं, तो दूसरेके पास दस सौ, और तीसरेके पास दस हजार । अगर एक देश सौ हवाई जहाज रखता है, तो दूसरा पाँच सौ, और तीसरा पाँच हजार । जिसके पास जितने कम हवाई जहाज हैं, उसे उतनी ही कम नींद आती है, और उस पर रात-दिन अपने जहाजोंकी संख्या बढा़नेकी फिक्र सवार रहती है । फिर ये विमान, ये यान, मुफ्तमें नहीं बनते । इनके पीछे करोडो़-अरबों रूपयोंका धुआँ उड़ जाता है । ये करोडो़ आते कहाँसे हैं? आते हैं प्रजाके पसीने और प्रजाके खूनसे । गांधीजीने अहिंसाके जो हथियार हमें दिये हैं, वे ये हैः सत्याग्रह । असहयोग । बलिदान । हँसते-हँसते मुसीबतोंका सामना करनेवाली जनताको देखकर अत्याचारीका अत्याचार निस्तेज हो जाता है । जल्लादके हाथ काँप उठते हैं । शिकारको कराहते देखकर ही न शिकारीका दिल नाचता है? तो बताइये कौन ताकत बडी़ है? तोपकी या अहिंसाकी? कौन बल बडा़ है? तोप-तलवारका या आत्माका? गांधीजी सुनी या पढी़ हुई बात नहीं कहते तरहतरहके संकट सहन करके उन्होंने अहिंसारूपी रत्न पाया है । अहिंसा में ही भारतवर्षका उद्धार और जय जयकार है । |