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काका कालेलकर

 

25. ‘पापी का भी प्रतिनिधि’

गाँधीजी के सत्याग्रह का एक व्याकरण था । उस व्याकरण के नियमों का पालन न करते हुए यदि सत्याग्रह किया जाय तो वह दुराग्रह बन जाता है, जबरदस्ती का एक प्रकार बनता है । पिछले बीस वर्षों में (1950 के पश्चात्) किसी ने भी शुद्ध सत्याग्रह का उदाहरण लोगों के सम्मुख नहीं रखा है । परिणामस्वरूप सत्याग्रह का स्थान हठाग्रह ने ले लिया है । हठाग्रह या तो वैधानिक सरकार को खा जायेगा अथवा सर्वत्र गुंडों का राज्य शुरू कर देगा ।

चौरी-चौरा हत्याकांड को गाँधीजी ने राष्ट्रीय पाप माना और स्वयं प्रायश्चित्त स्वरूप उपवास किया । तब कुछ लोग गाँधीजी के पास जाकर कहने लगे कि, ‘आप अहिंसा के पुजारी हैं, यह सारी दुनिया जानती है । वहाँ जिन्होंने हिंसा की, उनके साथ आपका दूर का संबंध तक जोड़ने की कोई हिम्मत नहीं करेगा फिर आप उस पाप के लिए स्वयं को जिम्मेदार क्यों मान रहे हैं ?’

गाँधीजीने उत्तर दिया, ‘मैं स्वयं को मन से भारत का प्रतिनिधि मानता हूँ । समस्त भारत का मैं सेवक प्रतिनिधि हूँ । भारत के पुण्यवान और पापी सभी का मैं प्रतिनिधि हूँ । इस देश के किसी भी व्यक्ति ने इस प्रकार हिंसा की तो उसकी जिम्मेदारी मेरे सिर पर ही आती है । समग्र भारत की ओर से मैं पश्चात्ताप न करूँ तो मेरा प्रतिनिधित्व लज्जित होगा ।’

इसीलिए राष्ट्र ने उन्हें राष्ट्रपिता कहा ।