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गांधीजी : विदेशी कार्टूनिस्टों की दृष्टि में

दक्षिण अफ्रीका में महात्मा गांधीजी ने हिंदुस्तानियों पर किए जानेवाले अत्याचारों के प्रतिरोध में तात्कालिक अंग्रेजी शासकों से जमकर लोहा लिया। 'संडे टाइम्स' का संपादक भले ही भारतीयों के विरुध्द कुछ भी लिखता, छापता रहे, किंतु इस अखबार कें व्यंग्य चित्रकार ने गांधी के संघर्ष का अत्यंत सजीव व्यंग्य रेखांकन किया। 'संडे टाइम्स'1 (1908) में ऐसा ही एक सटीक व्यंग्य चित्र का प्रकाशन कर हमार ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है।

चित्र-1

इस व्यंग्य चित्र में गांधीजी को एक महावत के रूप में तथा भारतीय समुदाय को एक विशाल शक्तिशाली हाथी के रूप में चित्रित करते हुए व्यंग्य चित्रकार ने बताया कि किस प्रकार जनरल स्मट्स2 सड़क बनानेवाले बेलन के द्वारा इस हाथी को धकेलने की पुरजोर कोशिश कर रहा है, किंतु हाथी को परे धकेलने में वह सफल नहीं हो पा रहा है। अपनी असफलता से स्मट्स परेशान नजर आ रहा है। इस व्यंग्य चित्र का शीर्षक बेलन और हाथी रखा गया है।

बेलन को ठेस से हाथी को गुदगुदी करना रहन दे। कार्टूनिस्ट ने इस व्यंग्य चित्र में जहाँ भारतीय जनता की ताकत की प्रत्यक्ष प्रशंसा की वहीं उसने जनरल स्मट्स की असफलता की खिल्ली भी उड़ाई।"

सन् 1908 में 'रैंडी मेल'3 में व्यंग्य चित्रकार ए. विल ने गांधी के आत्मबलिदान की भूरि-भूरि प्रशंसा की। इस चित्र में गांधीजी को पादरी के वेश में दरशाया गया है। जनरल स्मट्स ने उसे खंभे से बाँधकर उसके चारों ओर घास-फूस का ढेर लगा रखा है। पास में ही तीन कनस्तर, जिनमें ज्वलनशील तरल पदार्थ रखे हैं, दिखाए गए हैं। एक में लिखा है एशियाट का पंजीयन कानून। दूसरे में परमिट कानून तथा तीसरे में प्रवासी कानून। श्री स्मट्स के हाथ में जलती मशाल हे। आत्मविश्वास से भरे गांधीजी अभी भी मंद-मंद मुसकरा रहे हैं और मन-ही-मन मानो कह रहे हैं-

1. जोहांसबर्ग के प्रति रविवार को प्रकाशित होनेवाल एक लोकप्रिय साप्ताहिक।

2. प्रिटोनिया निवासी जॉन क्रिश्चियन स्मट्स : उपनिवेश सचिव।

3. जोहांसबर्ग का एक दैनिक पत्र।

" लगता तो बड़ा खूँखार, स्मट्स पीठ फेरे खड़ा है। उसकी हिम्मत नही है कि पुआल में आग लगा दे।"

चित्र – 2

जिस बेलन से स्मट्स भारतीय कौम रूपी हाथी को धक्के मारने की चेष्टा कर रहा था, वही बेलन चकनाचूर होकर बिखर गया। महावत के रूप में गांधीजी स्मट्स को चिढ़ाते हुए कह रहे हैं-कह गई न नाक इतनी लंबी।

कहिए, हैं तो आप सब मजे में! कितना करारा व्यंग्य!

चित्र – 3

क्रिटिक में ऐसा ही एक और व्यंग्य चित्र छपा, जिसमें हाथी पर सवार गांधीजी अपनी दसों अँगुलियों की छाप का स्वाद।" उन दिनों देश-विदेश में दस अँगुलियों की छाप का स्वाद।" उन दिनों देश-विदेश में दस अँगुलियों की छाप की बड़ी चर्चा थी। इसकी पृष्ठभूमि कुछ इस प्रकार से है-स्वेच्छया पंजीयन में शिक्षितों को अंगेज अधिकारियों ने भारतीय अधिकारी व व्यापारियों को दस्तावेजों में हस्ताक्षर करने की अपेक्षा दस अँगुलियों की छाप लगाने को कहा। जो शिक्षित भारतीय अधिकारियों एवं व्यापारियें के लिए सरासर अपमान की बात थी। सो, उन्होंने ऐसा करने से साफ मना कर दिया। खूब हो-हल्ला हुआ। यहाँ तक कि गुजराती भाषा में गीत तक बन गए-

दस आंगलियो तणी निशानी

दीये मुँछ नूं जाशे पाणी

चित्र-4

जब गांधीजी ने दस अँगुलियों की छाप लगाने की जगह हस्ताक्षर प्रयुक्त किया तब उपनिवेश सचिव महोदय यह देख हतप्रभ रह गए। 'रैंड डेली मेल' बनाना बिल के नाम से एक व्यंग्य चित्र प्रकाशित हुआ।

सन् 1911 में भारतीय सत्याग्रहियों के सम्मान में एक शाकाहारी भोज का आयोजन किया गया, जिसमें श्री विलियम हास्केन ने केला खाया तथा कानून भंग करनेवालों के पक्ष में एक जोरदार जोशीला भाषण दिया। इस संदर्भ को व्यंग्य चित्रकार ने अपने चित्र में में खूब उकेरा।

चित्र-5

एक और समकालीन व्यंग्य चित्र देखिए, जिसमें कार्टूनिस्ट ने विलियम हास्केन के नाम जी (JEE) और आस्केन के बाद धी (DHI) जोडकर उसका मखौल उड़ाने में कहीं कोई कसर नहीं छोड़ी। यहाँ हास्केन को गांधी वेश में उपस्थित किया गया।

चित्र-6

चित्र -7

चित्र-7 में व्यंग्य चित्रकार ने वाणिज्य की बरबादी में जिन-जिन लोगों ने सहयोग दिया उसका सुंदर चित्रण किया। दक्षिण अफ्रीका की भूमि पर वाणिज्य बिल रूपी पच्चड़ को सब ठीक रहे हैं। इस व्यंग चित्र का प्रकाशन 'संडे टाइम्स' में हुआ।

चित्र-8

'रैंडी मेल' में कार्टूनिस्ट डब्ल्यू. एल. का यह व्यंग्य चित्र भी व्यंग्य चित्रकारिता का एक उम्दा उदाहरण बन पड़ा है। इसमें गांधी को सत्याग्रही और स्मट्स को डाकू के रूप में दिखाया गया। दोनों के बीच वार्त्तालाप चल रहा है -

डाकू (स्मट्स) : "मरने के लिए तैयार हो जा।"

सत्याग्रही (गांधी) : "हाँ भइया स्मट्स, मैं तैयार हूँ। कृपा कर कोई कसर बाकी न रखें।"

डाकू : "भले मानुस यह न कह। यह कमबख्त चलती ही नहीं।"

चित्र-9

क्रिटिक में एक व्यंग्य चित्र प्रकाशित हुआ। इसमें युवा गांधी हाथ में तख्ती लिये खड़े हैं, जिस पर लिखा है-देश निकाला देने का अधिकार नहीं। इस तख्ती को देख अंग्रेज शासक भाग खड़े हुए हैं।

अंग्रेज यह जानते थे कि भारतीयों को देश निकाला नहीं दिया जा सकता। पर इसका विदोह केवल गांधीजी ही कर पाए थे।

गांधीजी ने अंग्रेजी शासक की हर दमन नीति का पुरजोर विरोध किया, जिसका उल्लेख वहाँ के अखबारों में भी समय-समय पर होता रहता था। 'संडे टाइम्स' में प्रकाशित चित्र में श्री गांधी का स्वप्न शीर्षक मुं स्मट्स और कानून पर टिप्पण प्रस्तुत हुई है। मेज पर कुहनी टिकाए स्मट्स चिंतामग्न हो सोच रहे हैं-

रजिस्ट्रेश्न भारी कजा

रेजिस्टेंस है अससे बड़ी

सी. बी. बुड्ढा तंग किए है

गांधी ने पागल बना दिया ।

(सी. बी. यानी कैंबेल बेनरमें-ये इंग्लैंड के प्रधानमंत्री थे)

( टिप्पणी : यह व्यंग्य चित्र उपलब्ध नहीं हो पाया )

आइए देखें, अब एक करुणजनक व्यंग्य चित्र।

इसमे गांधीजी को नुकीला कवच पहने हुए दिखाया गया है। कवच में लिखा है--

मुझे छुइए मत।

मै हूँ आपका दिन।

- पैसिवली गांधी

चित्र-10

चित्र – 11

गांधी और स्मट्स के बीच सदैव नोक-झोंक चलती ही रहती। उन दिनों गांधी तथा अन्य रिहायशी भारतीयों को हर कदम पर संघर्ष करना पड़ रहा था। व्यंग्य चित्रकार ने यहाँ गांधी को एक मदारी के रूप में तथा जनरल को बंदर के रूप में दरशाया। दोनों के बीच हुए संवाद की एक बानगी- से तंग आ चुके हैं।"

जनरल : "िमयाँ मदारी। चलते बनो। हम तुमसे और तुम्हारे बाजे से तंग आ चुके हैं।

गांधी : " ओर हुजूर, मुझे क्या देंगे, यदि मैं चलता बनैं?’

जनरल : "दूँगा, जरूर दूँगा। अगर तुम यहाँ से चलते न बनो।

चित्र – 12

गांधीजी सत्याग्रही के रूप में जब फोक्सरस्ट जेल में बंदी थे तब वहाँ पर उन्होंने भारतीय बंदियों को दिए जानेवाले भोजन के प्रति अंग्रेज जेलरों के सौतेले व्यवहार को लेकर भी विरोध किया था। भारतीय सत्याग्रहियों को दिए जानेवाले भेजन में चिकनाई का अभव होता। यूरोपियन कैदियों को मांस दिया जाता, जबकि भारतीय कैदियों को पू पू (मकई की दलिया), सब्जी व चावल भर मिलता। व्यंग्य चित्रकार ने गांधी को अधिकार के प्रति जागरूक रहने एवं विषम परिस्थितियों में भी हास-परिहास की प्रवृत्ति कायम रखने की सुप्रवृत्ति को उजागर करने की चेष्टा की।

चित्र – 13

स्वतंत्रता-प्राप्ति के लिए देश-विदेश में गांधीजी ने जो संघर्ष किया, वह न केवल अनुकरणी बना, अपितु अपनी सहजता, सादगी, सत्यनिष्ठा व देशभक्ति से लोगों का हृदय जीत लिया। गांधीजी का व्यक्तित्व इतना प्रभामंडलीय था कि विदेशी व्यंग्य चित्रकार भी उनके चुंबकीय व्यक्तित्व के आकर्षण से बच न सके।

चित्र – 14

12 मार्च, 1930 की सुबह साढ़े छह बजे साबरमती आश्रम से दांडी यात्रा प्रारंभ कर अरेबियन सागर तक (240 मील) जाने का विचार कर नमक सत्याग्रह के लिए निकल पड़े, साथ में थे उनके अठहत्तर कार्यकर्ता तथा अनगिनत भीड़। जेक (Czech)का यह व्यंग्य चित्र (चित्र-14) अत्यंत दुर्लभ है।

चित्र – 15

गांधीजी को बकरी का ही दूध पसंद था। वह भी काली बकरी का। इंग्लैंड गए तो वहाँ भी उन्होंने काली बकरी का ही दूध लिया। इसके लिए उन्हें काफी जद्दोजहद करनी पड़ी थी। उनके इस 'स्वाभाव' को 'डेली मेल' कार्टूनिस्ट ने अभिव्यक्त किया।

चित्र – 16

देश का संपूर्ण भार गांधीजी ने अपने कंधे पर लिया था। वे गोलमेज परिषद् के खोखलेपन से बेहद् दुःखी थे, इसी से 'भारत ' का भार वे स्वयं अपने कंधे पर उठाना चाहते थे। माल (Mall) ने तब यह व्यंग्य चित्र बनाया। जो फ्री पेस जनरल में प्रकाशित हआ था।

चित्र – 17

चित्र – 18

चित्र – 19

चित्र – 20

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