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खण्ड 2 : राष्ट्रपिता
 

14. ‘गांधी बाबा को सबकी चिन्ता है’  

आज एक निराली ही कहानी सुनाता हूँ । तुम लोगों ने कवि और काव्यगायक श्री सोपानदेव चौधरी का नाम सुना होगा । वे एक सत्कवि हैं, उनके काव्य-गायन का श्रवण यानी एक अपूर्ण भोज का अवसर । उन्होंने एक बार महात्माजी के संबंध में स्व-रचित कविता रेडियो पर सुनायी । यह संस्मरण उन्होंने ही मुझे सुनाया था ।

एक बार महात्माजी दौरा करते हुए खानदेश आये थे । जलगाँव में विराट् सभा हुई । गाँवों से हजारों किसान आये थे । गिरणा नदी के किनारे बसे हुए मछुए भी सभा में आये थे । सभा समाप्त हुई । लोगों के झुण्ड अपने-अपने गाँवों की ओर लौट रहे थे । आपस में बातें करते जा रहे थे । जाल कंधों पर डाले हुए बोल रहे हैः

“अरे यार, हम बडे़ पापी हैं । गांधी बाबा तो अहिंसा की बात करता है और हम दिन-रात मछली पकड़ते हैं । हमारी सारी जिन्दगी हिंसा में ही बीतती है । भला, धंधा न करें तो करें क्या ? खायें क्या ? वह (गांधीजी) कहते हैं ‘किसीको मत मारो ।’ हम मछली मारने का धंधा छोड़ दें तो दूसरा कौन-सा कर सकेंगे ? अपने पास न खेती, न बाडी़ । नदी का पानी यही अपनी खेती है, मछलियों की खेती । कैसे क्या करें ?”

“अरे, तू फिक्र क्यों करता है ? गांधी बाबा को सबकी चिन्ता है । कल स्वराज्य आने पर गांधी बाबा हमें बुलायेंगे और कहेंगे कि मछली मत मारो, हिंसा मत करो । तुम्हारे लिए यह धंधा चुन लिया है । यह सीख लो और ठीक से गृहस्थी चलाओ । अरे, उसको सबकी चिंता है । हमारे गुजारे की चिन्ता क्या उन्हें नहीं होगी ? नया धंधा मिलते ही यह जाल तोड़कर गिरणा में फेंक देंगे । तब तक चलायेंगे यह धंधा । क्या करें ? लेकिन गांधी बाबा को सबकी चिन्ता है । चलो, रात हो जायेगी ।’’