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9. धरसना नमक सत्याग्रह

गाँधीजी गिरफ्तार हो गये थे इसलिए धरसना नमक डिपो पर की जाने वाली रेड का नेतश्त्व नहीं कर सकते थे। इसलिए अब्बास तैयबजी करडी से रेड का नेतश्त्व करने के लिये चल पड़े। 12 मई की सुबह सत्याग्रही जल्दी उठे, प्रार्थना की और क्रमबद्ध खड़े हो वे धरसना की यात्रा पर जाने के लिये तैयार थे। दल ने अभी चलना आरम्भ ही किया था कि उनका सामना सूरत के जिला मजिस्ट्रेट और सुपरिंटेंडेंट पुलिस एवं उनके साथ चार सौ सिपाहियों से हुआ जो राइफलों और लाठियों से लैस थे। अब्बास तैयबजी और अन्य सत्याग्रहियों को गिरफ्तार कर लिया गया। उन्हें बसों में बिठाकर जलालपुर ले जाया गया।

अब यह सरोजिनी नायडू की जिम्मेवारी थी कि वह सत्याग्रह का नेतश्त्व करें। उस समय वह इलाहाबाद में कांग्रेस कार्यकारिणी समिति की बैठक में थप। जब उन्हें अब्बास तैयबजी के गिरफ्तार होने की सूचना मिली, वह तत्काल धरसना की ओर चल पड़प जो बम्बई की उत्तर दिशा में 250 किलोमीटर दूर था।

सरोजिनी नायडू ने कहा, "मैं विजयी होऊंगी या मर जाऊंगी। जब नमक डिपो के मिलिटरी चौकीदारों को हटा कर हम आगे बढ़ेंगे तो सत्याग्रहियों में सबसे आगे मैं रहूंगी। मैं कैंची से कांटेदार तार काट कर अपने हाथों से नमक छीनूंगी।"
"मैं स्त्री हूं लेकिन स्वतंत्रता के इस आन्दोलन में मैं ऐसे भाग लूंगी जैसे कि पुरुष होऊं। मैं महसूस करती हूं कि महात्माजी और राष्ट्र ने मुझे कितनी बड़ी ज़िम्मेदारी सौंपी है। ईीवर द्वारा भेजे इस अवसर का अधिक से अधिक लाभ उठाऊंगी। जेल या मृत्यु मुझे भयभीत नहीं करेगी।"

15 मई को पौ फटते ही सरोजिनी नायडू और पचास स्वयंसेवक खादी के वस्त्राsं में डिपो की ओर रवाना हुए। उनके पास कैंचियां थप जिनसे कांटेदार तार काटे जा सकते थे। आधे घंटे के पीचात उन्हें पुलिस के सिपाहियों ने रोका। पुलिस सुपरिंटेंडेंट ने सरोजिनी नायडू से कहा कि वह आगे नहीं जा सकतप। उन्होंने उत्तर दिया, "फिर मैं यहप ठहरूंगी। मैं लौटकर पीछे भी नहीं जा रही।"

पुलिस सुपरिंटेंडेंट ने कहा, "जब तक आप यहां रहेंगी हम भी यहां ठहर कर सत्याग्रह करेंगे।"

उसके बाद दोनों पक्ष आमने-सामने बैठ गये। सरोजिनी नायडू को निकट के घर से एक कुर्सी मिल गई। वह बैठकर पत्र आदि लिखने लगप और फिर चर्खा कातने लगप। सिर पर सूर्य की प्रचण्ड धूप पड़ रही थी। लेकिन स्वयंसेवक वहप सड़क पर बैठे रहे। उन्होंने छाया या छत की खोज नहीं की।

अट्ठाइस घंटे के इस शांत आमने-सामने के पीचात पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार करने की धमकी दी। वह स्वयंसेवकों के शिबिर में जाकर और दलों के डिपो तक जाने का प्रबन्ध करने लगप। तब तक पुलिस ने बाकी लोगों को वहां से हटा दिया।

और स्वयंसेवकों ने उनका स्थान ले लिया और जब पुलिस उन्हें भी ले गई तो और अधिक स्वयंसेवक उनका स्थान लेने आ गए। स्वयंसेवक उकडू बैठकर अवसर की तलाश में रहते कि कब भाग कर कांटेदार तार तक पहुंच सकें। हर बार जब वे वहां पहुंचने का प्रयत्न करते पुलिस उनका रास्ता रोक लेती। चार दिन तक यह खेल चलता रहा। दो सौ पचास स्वयंसेवकों को सड़क से गिरफ्तार करके निकट के अस्थायी जेल में डाल दिया गया।

20 मई को स्वयंसेवकों को आदेश मिला कि वे नमक के डिपो तक पहुंचने और वहां रखे नमक के बरतनों को छीनने के लिये हिंसा के सिवाय कोई भी साधन अपना सकते हैं। उनसे कहा गया कि अपने उद्देश्य में सफलता पाये बिना वे वापस न आयें। उस दिन एक सौ पचास से अधिक स्वयंसेवक गिरफ्तार हुए। लेकिन बाद में उन्हें छोड़ दिया गया।

अगले दिन चन्द्रमा की चांदनी में ही प्रार्थना की गई और सरोजिनी नायडू ने स्वयंसेवकों को धरसना नमक डिपो पर हमला करने के लिये उकसाया। उन्होंने कहा, "भारत का सम्मान तुम्हारे हाथों में है। किसी भी दशा और स्थिति में हिंसा का उपयोग नहीं होना चाहिये। आपको पीटा जायेगा मगर आप इसका विरोध नहीं करेंगे। आपको उनके प्रहारों से बचने के लिये अपने हाथ भी नहीं उठाने होंगे। यद्यपि गाँधीजी का शरीर कैद में है, मगर उनकी आत्मा तुम्हारे साथ है।"

स्वयंसेवकों ने नारा लगाया, `गाँधीजी की जय।" वे पंक्तिबद्ध हुए। उनके नेताओं के हाथ में रस्सियाँ और तार काटने की कैंचियां थप। वे सब डिपो की ओर बढ़े।

कांटेदार तारों के पीछे चमकते नमक का ढेर लगा हुआ था। इसकी पहरेदारी चार सौ सिपाही कर रहे थे। इनकी कमान कई ब्रिटिश अफसरों के हाथ में थी।

गाँधीजी के दूसरे बेटे, मणिलाल गाँधी सत्याग्रहियों के बिलकुल आगे की पंक्ति में थे। कांटेदार तार के पास पहुंचते ही उन्होंने इंकलाब ज़िंदाबाद का नारा लगाया।

सत्याग्रहियों का दल साड़े छह बजे सुबह डिपो पर पहुंच गया। नेताओं ने तारों में लगे लकड़ी के खम्भों में रस्सी डाल कर उन्हें उखाड़ देना चाहा। उसी समय पुलिस उन पर लोहे की नोक वाली लाठियां लेकर लपकी।

एक भी सत्याग्रही ने अपने को बचाने के लिये हाथ नहीं उठाया यद्यपि पुलिस उन्हें बारगबार पीट रही थी। दो तीन मिनट में ही वहां की धरती गिरे हुए सत्याग्रहियों से फट गई। उनकी खोपड़ियां फट गई थप और कन्धों की हड्डियां टूट गई थप। उनके सफेद कपड़ों पर खून के बड़ेगबड़े धब्बे पड़ गये थे। लेकिन उनके पीछे के सत्याग्रही बराबर आगे बढ़ते रहे जब तक उन्हें भी मार कर गिरा नहीं दिया गया।

जब पहले दस्ते में सब गिर पड़े तो स्ट्रैचर वाहक लपक कर आये और सब घायलों को उठा कर एक झोंपड़ी में ले गये।

फिर दूसरा दस्ता कांटेदार तारों की ओर बढ़ा। यह दस्ता भी मार कर गिरा दिया गया। कोई लड़ाई नहीं हुई। सत्याग्रही तब तक आगे बढ़ते थे जब तक वे घायल होकर गिर न पड़ते।

जो सत्याग्रही विरोध तक नहीं कर रहे थे उनकी बर्बर पिटाई ने कई दर्शकों को क्रोधित कर दिया। नेतागण बड़ी कठिनाई से इन दर्शकों को शान्त रख रहे थे और गाँधीजी के निर्देशों की याद करा रहे थे। ब्रिटिश सुपरिंटेंडेंट भी भीड़ के क्रोधीभाव को अनुभव कर रहा था इसलिये उसने पच्चीस सिपाही एक ऊंची ज़मीन पर खड़े कर दिये कि यदि भीड़ हिंसक हो जाये तो गोली चला दें।

स्वयंसेवकों ने अब एक अन्य युक्ति अपनाई। पच्चीस-पच्चीस सत्याग्रहियों के दल कांटेदार तारों के निकट बैठ गये। उन्होंने भीतर जाने का कोई प्रयत्न नहीं किया। तब भी पुलिस ने उन पर हमला किया। उनके घायल शरीर एक दूसरे के ऊपर गिर पड़े लेकिन इसी समय एक नये दल ने उनका स्थान ले लिया। उन्होंने पुलिस के पीटने का कोई विरोध नहीं किया।

पुलिस वाले तब लोगों को बाहों या टांगों से पकड़ कर घसीटने लगे। कुछ को पास के पानी से भरे नाले में फेंक दिया गया।

हर घंटे स्ट्रैचर उठाये लोग घायल और खून से तरबतर लोगों को उठा ले जाते और अस्थायी अस्पताल में रखते। वहां डाक्टर इतने सारे घायलों की पूरी देखरेख नहीं कर पा रहे थे। आखिर ब्रिटिश अफसर सरोजिनी नायडू के पास गया और उनका बाजू छू कर बोला, "आप हमारी हिरासत में हैं।"

उन्होंने कहा, "मैं तुम्हारे साथ चलती हूं मगर मुझे छुओ मत।

जब सरोजिनी नायडू अफसर के पीछे-पीछे कांटेदार तारों के बाड़े की ओर चलप जो उस समय जेल का काम कर रहा था तो भीड़ ने नारे लगाये। उसके बाद मणिलाल गाँधी को भी गिरफ्तार कर लिया गया।

स्वयंसेवकों ने दो दिन के लिये सत्याग्रह को रोक दिया ताकि नए सत्याग्रही आ जाएं। लेकिन पुलिस और सेना ने धरसना आने वाली मुख्य सड़क को रोक दिया जिससे नये स्वयंसेवक वहां पहुंच ही न सकें।

यद्यपि नये स्वयंसेवकों को आने नहीं दिया जा रहा था, लेकिन जो सत्याग्रही वहां थे उन्होंने बारगबार नमक फैक्टरी में घुसने का प्रयत्न किया और ऐसा वे 6 जून तक करते रहे।

धरसना के बारे में लिखते हुए यंग इंडिया ने कहा, "यह है भारत की सरकार - इसके दांत और पंजे खून से लाल हैं। यह अपनी लाठियां शान्त और निहत्थे लोगों पर बरसाती है। सत्याग्रही नमक की ढेरियों में से नमक लाने में असफल रहे। उन्हें पीटा गया, घायल किया गया और गालियां दी गइऔ। उस समय उनकी आंशिक हार हुई क्योंकि कुछ लोग क्रूर व तगड़े लाठी चार्ज का सामना न कर सके।

लेकिन जिनको लाठियां पड़प उन्होंने उन्हें प्रस़तापूर्वक सहा। उन्होंने पूरे संसार के सामने सरकार की पोल खोल दी, इसका आधार लोगों के प्रेम और उनकी अनुमति पर नहीं है लेकिन यह लोगों की इच्छा के विरुद्ध उन पर डंडे से शासन करती है।

"वे तभी तक भारत पर शासन कर सकते हैं जब तक लोग मजबूत और दृढ़ निीचय होकर सब दुख सहने को तैयार नहीं हो जाते कि सरकार को हटा देंकृ कौन कहेगा कि सत्याग्रही हार गये? हम आशा करते हैं कि उनके दुख और सहनशीलता से तानाशाहों के हृदय में परिवर्तन होगा।"

इस आंदोलन का लक्ष्य केवल मुट्ठीभर नमक छीनना नहीं था बल्कि लोगों को बताना था कि ब्रिटिश शासन का आधार हिंसा और डंडा है और सरकार पर व्यावहारिक दृष्टि से दबाव डालना था।

गाँधीजी चाहते थे कि भारतीयों का आत्मसम्मान बढ़े। वे यह दिखा दें कि वे ताकतवर ब्रिटिश सरकार को भी ललकार सकते हैं।

जैसे कि उन्होंने आशा की थी सरकार की दमन नीति से लोग झुकने के बजाय सत्याग्रह पर और दृढ़ हो गये। सारे देश में लोग या तो नमक बनाते या नमक कारखानों पर हमला करते। बम्बई के निकट बड़ाला साल्ट वर्कस पर पन्ौह हजार स्वयंसेवकों ने सत्याग्रह किया। कईयों को लाठियों से मारा गया और वे बुरी तरह घायल हो गये।

विदेशी कपड़े के बहिष्कार का प्रभाव इंग्लैंड का कपड़ा उद्योग महसूस करने लगा था। करीब न के बराबर कपड़ा भारत में बिक रहा था। लंकाशायर की कई मिलें बन्द पड़ी थप।

कर न देने का आन्दोलन, विशेषकर गुजरात में, खूब फैल गया था। बारदोली, बोरसद और कम्बूसर के तालुकों में किसानों पर दमन चक्र चला क्योंकि उन्होंने लगान देने से इंकार कर दिया था। उनकी सम्पत्ति बहुत कम कीमत पर बेच दी गई। एक स्थान पर तो तीन हजार की सम्पत्ति केवल पन्द्रह रुपये में बेची गई। जब वे सरकार का दमन और क्रूरता न सह सके तो करीब 80,000 लोग गुजरात से बड़ोदा रियासत में चले गये।

एक रिपोर्ट में कहा गया, "घरों की लाइन की लाइन में ताले लगे हैं और उनकी खिड़कियों से खाली कमरे दिखाई देते हैं। गलियां मानो धूप की मौन झीलें हों।"

करीब एक लाख सत्याग्रही जिनमें 17,000 औरतें थप जेलों में थे। अशान्ति और असन्तोष चारों ओर फैल गया था। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने अब छात्रों से स्कूलों और कॉलेजों का बहिष्कार करने के लिये कहा। उन्हें स्वतंत्रता के आन्दोलन में भाग लेने के लिये कहा गया। पंडित जवाहर लाल नेहरू ने जनता से आने वाली जनगणना का बहिष्कार करने के लिये कहा।

प्रशासन करीब-करीब ठप्प हो गया था। जिस वाइसराय ने गाँधीजी की चुटकी भर नमक से सरकार को परेशान कर देने की योजना की हंसी उड़ाई थी अब महसूस करने लगा था कि स्थिति पर उसका नियंत्रण न के बराबर है। चुटकी भर नमक गाड़ी भर बारूद से ज्यादा शक्तिशाली प्रमाणित हुआ था।

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