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5. दांडी पहूँचे

धीमे डांडी मार्च ने, जिसमें 24 दिन लगे - केवल भारत के लोगों का ही नहीं बल्कि सारे संसार का ध्यान इस ओर आकर्षित किया।

सब समाचार पत्रों और समाचार-फिल्मों में इसी के समाचारों की प्रधानता रहती थी। जब सरकार ने भारत के कई प्रान्तों में मार्च की समाचार फिल्मों पर प्रतिबन्ध लगा दिया तो गाँधीजी के सचिव ने कहा, "भारत का स्वतंत्रता आन्दोलन सिनेमा की फिल्मों पर निर्भर नहीं करता।"

सारे देश का ध्यान गाँधीजी पर लगा हुआ था। नेहरू ने कहा, 'और आज तीर्थयात्री अपनी लम्बी यात्रा पर जा रहा है। डंडा पकड़े वह गुजरात की धूल भरी सड़कों पर चलता है, स्पष्ट दृष्टि और दृढ़ कदमों के साथ वह अपनी वफादार टोली के साथ आगे बढ़ रहा है। भूतकाल में उन्होंने कई यात्रायें की हैं और कई सड़कों पर चले हैं। लेकिन और अन्य सब यात्राओं से, जो उन्होंने पहले की थप, यह यात्रा अधिक लम्बी है। उनके रास्ते में कई बाधायें हैं। उनमें निीचय की .ढता है और है अपने दुखी और गरीब देशवासियों के लिये असीम प्रेम। सत्य के प्रति प्रेम जलाता है और स्वाधीनता का प्रेम प्रेरणा देता हैकृ यह एक लम्बी यात्रा है क्योंकि इसका उद्देश्य है भारत की पूर्ण स्वाधीनता और भारत के करोड़ों लोगों के शोषण का अन्त।"

अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की सभा 21 मार्च को, डांडी मार्च के अरम्भ होने के 9 दिन पीचात, अहमदाबाद में हुई। उन्होंने महात्मा गाँधी के आन्दोलन का अनुमोदन किया और आशा व्यक्त की कि सारा देश इसमें सहयोग देगा। उन्होंने प्रांतीय कांग्रेस कमेटियों को अधिकार दिया कि महात्मा गाँधी द्वारा नमक कानून उल्लंघन के बाद वे सब अपने-अपने प्रांत में नमक कानून का उल्लंघन नियोजित ढंग से करें।

पंडित नेहरू, जो उस समय भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस कमेटी के प्रधान थे, जम्बुसर में गाँधीजी से मिले। उनके साथ पिता मोतीलाल नेहरू भी थे।

उन्होंने उस प्रतिज्ञा का मसौदा बनाया जो सत्याग्रह में भाग लेने वाले हर स्वयंसेवक को लेनी होगी। उसमें कहा थाः

  1. मैं भारत की स्वतंत्रता के लिये राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा आरम्भ अवज्ञा आन्दोलन में भाग लेना चाहता हूं।

  2. मैं राष्ट्रीय कांग्रेस के सिद्धान्तों से सहमत हूं कि भारतवासियों को पूर्ण स्वराज्य मिलना चाहिये। इसके लिए हम वैध और शान्त तरीके अपनायेंगे।

  3. इस आन्दोलन के दौरान मैं जेल जाने और जो भी दुख और सजा मिले उसे झेलने को तैयार हूं।

  4. यदि मुझे जेल भेज दिया गया तो मैं अपने परिवार के लिये कांग्रेस फंड से धन की सहायता नहीं मांगूंगा।

  5. मैं आन्दोलन के नेताओं का आदेश मानूंगा।

इसमें कोई सन्देह नहीं कि हजारों इस प्रतिज्ञा को लेने के लिए तैयार थे। जैसे-जैसे सत्याग्रही आगे बढ़ते गये सारे देश में देशभक्ति की लहर फैल गई। सारे भारत में राष्ट्रीय ध्वज फहराए गये और कानून उल्लंघन के समर्थन में भाषण दिये गये।

बहुत से लोग गिरफ्तार किये गये और जेल भेज दिये गये। लेकिन फिर भी वे गाँधीजी के निर्देशानुसार शान्त रहे। उन्होंने कहा था, 'यदि तुम्हें जेल भेजा जाये तो तुम्हें धर्मनिष्ठा से जाना चाहिये। यदि तुम्हें मारा-पीटा जाये तो उसे प्रस़ता से सहो और तुम पर गोली चलाई जाये तो शान्ति से मरो।"

लोगों पर महात्मा गाँधी का ऐसा प्रभाव था कि लोग बिना किसी प्रश्न के उनके पीछे चलने को तैयार थे। वह उनके उद्देश्य को उचित और न्यायसंगत समझते थे और उनके शब्दों को याद रखते थे। 'वर्तमान सरकार भ्रष्ट और बुरी है। ऐसी बुरी सरकार के प्रति वफादारी पाप है। वफादार न होना ही अच्छा है। यह बात कि तीन सौ अंग्रेजों से तीस करोड़ लोग डरते रहे हैं, राज्य करने वालों और प्रजा दोनों के लिये नैतिक पतन का कारण है। जिन्होंने इसकी बुराई महसूस की है उन लोगों का कर्त्तव्य है कि इसे नष्ट कर दें। यह लक्ष्य पाने के लिये उन्हें कोई भी खतरा उठाने से नहीं डरना चाहिये।"

इतनी शक्तिशाली राष्ट्रीय भावना जाग उठी थी कि उसे देख सरकार कुछ डर गई। ऐसे संकेत मिले कि वह कमजोर हो रही है। उन्होंने वायदा किया कि नमक कर की समस्या शुल्क समिति के सामने रखेंगे, जिससे नमक जनता को बहुत कम कीमत में मिल सके। लेकिन गाँधीजी केवल इतनी बात से संतुष्ट नहीं थे।

सत्याग्रही अब समुद्र के निकट पहुंच रहे थे। ताड़ के पेड़ ज्यादा दिखाई देने लगे, समुौाh पक्षी भी दिखने लगे थे और समुद्र से भीतर की ओर बहती ठंडी हवा भी सब महसूस कर रहे थे। नवसारी से छोटे शहर में, डांडी से केवल 20 किलोमीटर दूर, गाँधीजी ने एक सभा को सम्बोधित किया और कहा, 'मैं जो चाहता हूं वह लेकर ही वापस जाऊंगा नहीं तो मेरी लाश समुद्र में तैरेगी।"

तीन अप्रैल को गाँधीजी ने 'यंग इंडिया" में एक लेख लिखा जिसमें उन्होंने जनता को सविनय अवज्ञा आन्दोलन करने को कहा था और उसे 6 अप्रैल से आरम्भ करने की घोषणा की जब स्वयं वह भी दांडी में नमक कानून तोड़ेंगे। इस तारीख का चुनाव 'राष्ट्रीय सप्ताहू के आरम्भ से मेल खाते हुए रखा गया, जो सन् 1919 में जलियांवाला बाग के हत्याकांड के शहीदों को श्रद्धांजलि देने के लिये मनाया जाना था।

पांच अप्रैल की सुबह को सत्याग्रही डांडी पहुंच गये। बंगले के मालिक ने, जो एक व्यापारी था, उन्हें यह बंगला रहने के लिये दिया था। उन्होंने वह दिन प्रार्थना और ध्यान में बिताया। उन्हें वेद मंत्र पढ़कर सुनाये गये। बंगले से वह समुद्र की उमड़तीगघुमड़ती उत्ताल तरंगों को देख सकते थे। रेत पर सफेद नमक चादर की तरह फैला हुआ था, जो समुद्र उपहार के तौर पर पीछे छोड़ गया था।

वहां कई पत्रकार थे जो गाँधीजी से साक्षात्कार करना चाहते थे और उन्होंने एसोसिएटेड प्रेस के संवाददाता से कहा 'मैं सरकार की अहस्तक्षेप नीति की प्रशंसा किए बगैर नहीं रह सकता, जो उन्होंने पूरी यात्रा के दौरान अपनाई है। अब यह देखना बाकी है कि क्या सरकार कल जनता द्वारा बड़े पैमाने पर नमक कानून का वास्तविक उल्लंघन भी उसी तरह सहन करती है जैसे उन्होंने अब तक किया हैकृ यदि भगवान ने चाहा तो अपने साथियों समेत कल सुबह 6.30 बजे 'से अवज्ञा आन्दोलन आरम्भ करूंगा।"

'जलियांवाला हत्याकांड के बाद से 6 अप्रैल हमारे लिये तप और अपने को शुद्ध करने का दिन बन गया है। इसलिये हम इसे प्रार्थना और उपवास से आरम्भ करते हैं। मुझे आशा है कि सम्पूर्ण भारत कल से शुरू होने वाले राष्ट्रीय सप्ताह को उसी भावना से मनायेगा जिस भावना से इसे शुरू किया गया है।

'मुझे निरंकुश शक्ति के विरुद्ध अधिकारों के संघर्ष में सारे संसार की सहानुभूति चाहिये।

जो सत्याग्रही गाँधीजी के साथ आये थे, समुद्र तट पर विचरते रहे। कई समुद्र में नहाये भी। जिस बंगले में गाँधीजी ठहरे थे उसमें पुलिस लगी हुई थी लेकिन सब कुछ शान्तिपूर्ण था, इसलिये उनको चिन्ता करने का कोई कारण नहीं था।

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