7. मादक पदार्थ |
हिन्दुस्तानमें शराब, भांग, गांजा, तम्बाकू और अ़फीम मादक पदार्थोमें गिने शराबमें इस देशमें पैदा होनेवाली ताड़ी और ‘एरक’ आते हैं; और परदेशसे आनेवाली शराबोंका तो कोई हिसाब ही नहीं है । ये सर्वथा त्याज्य हैं । (8-10-’42) शराब शराब पीकर मनुष्य अपना होश खो बैठता है और निकम्मा बन जाता है । जिसको शराबकी लत लगी होती है, वह खुद बरबाद होता है और अपने परिवारको भी बरबाद करता है । वह सब मर्यादायें त़ेड देता है । एक पक्ष ऐसा है जो निश्चित (मर्यादित ) मात्रामें शराब पीनेका समर्थन करता है और कहता है कि इससे फायदा होता है । मुझे इस दलीलमें कोई सार नहीं लगता । पर घड़ीभरके लिए इस दलीलको मान लें, तो भी अनेक ऐसे लोगोंके खातिर, जो कि मर्यादामें रह ही नहीं सकते, इस चीजका त्याग करना चाहिये । पारसी भाइयोंने ताड़ीका बहुत समर्थन किया है । वे कहते हैं कि ताड़ीमें मादकता तो है, मगर ताड़ी एक खुराक है और दूसरी ख़ुराकको ह़जम करने में मदद पहुँचाती है । इस दलील पर मैंने खूब विचार किया है और इस बारेमें क़ाफी पढ़ा भी है । मगर ताड़ी पीनेवाले बहुतसे गरीबोंकी मैंने जो दूर्दशा देखी है, उस पर से मैं इस निर्णय पर पहुंचा हूँ कि ताडीको मनुष्यकी खुराकमे स्थान देनेकी कोई आवश्यकता नहीं है । ताड़ीमें जो गुण माने गये हैं, वे सब हमें दूसरी खुराकमे मिल जाते हैं । ताड़ी खजूरीके सरसे बनती है । खजूरीके शुध्द रसमें मादकता बिलकुल नहीं होती । उसे नीरा कहते हैं । त़ाजी नीराको ऐसीकी ऐसी पीनेसे कई लोगोंको दस्त साफ आता है । मैंने खुद नीरा पीकर देखी है । मुझ पर उसका ऐसा असर नहीं हुआ । परन्तु वह ख़ुराकका काम तो अच्छी तरहसे देती है । चाय इत्यादिके बदले मनुष्य सवेरे नीरा पी ले, तो उसे दूसरा कुछ पीने या खानेकी आवश्यकता नहीं रहनी चाहिये । नीराको गन्नेके रसकी तरह पकाया जाय, तो उससे बहुत अच्छा गुड तैयार होता है । (9-10-’42) खजूरी ताड़की एक किस्म है ।हमारे देशमें अनेक प्रकारके ताड़ कुदरती तौर पर उगते है । उन सबमें से नीरा निकल सकती है । नीरा ऐसी चीज है जिसे निकालनेकी जगह पर ही तुरन्त पीना अच्छा है । नीरामें मादकता जल्दी पैदइा हो जाती है । इसलिए जहां उसका पुरन्त पायोग न हो सके, वहां उसका गुड़ बना लिया जाय तो वह गन्नेके गुड़की जगह ले सकता है । कई लोग मानते हैं कि ताड़-गुड़ गन्नेके गुड़की अपेक्षा अधिक मात्रामें खाया जा सकता है । ग्रामोद्योग संघके द्वारा ताड़-गुड़का क़ाफी प्रचार हुआ है । मगर अभी और ज़्यादा मात्रामें इसका प्रचार होना चाहिये । जिन ताड़ोंके रससे ताड़ी बनाई जाती है, उन्होंसे गुड़ बनाया जाये, तो हिन्दुस्तानमें गुड़ और खांडकी कभी तंगी पैदा न हो और गरीबोंको सस्ते दाममें अच्छा गुड़ मिल सके । ताड़-गुडकी मिश्री और गरीबोंको सस्ते दाममें अच्छा गुड़ मिल सके । ताड़-गुडकी मिश्री और सक्कर भी बनाई जा सकती है । मगर गुड़ शक्कर या चीनीसे बहुत अधिक गुणकारी है । गुडमें जो क्षार हैं वे शक्कर या चीनीसे बहुत अधिक गुणकारी है । गुडमें जो क्षार हैं वे शक्कर या चीनेमें नहीं होते । जैसे बिना भूसीका आटा और बिना भूसीका चावल होता है, वैसे ही बिना क्षारकी शक्करको समझना चाहिये । अर्थात् यह कहा जा सकता है कि खुराक जितनी अधिक स्वाभाविक स्थितिमें खाई जाय, उतना ही अधिक पाषण उसमें से हमें मिलता है । ताड़ीका वर्णन करते हुए मुझे स्वभावत नीराका उल्लेख करना पड़ा और उसके संबन्धमें गुड़का । मगर शराबके बारेमें मुझे अभी और कहना है । शराबसे पैदा होनेवाली बुराईका जितना कड़वा अनुभव मुझे हुआ है, मैं नहीं जानता कि उतना सार्वजनिक काम करनेवाले किसी और सेवकको हुआ होगा । दक्षिण अफ्रिकामें ‘िगरमिट’ (अर्ध-गुलामी) में काम करनेवाले हिन्दुस्तानियोंमें बहुतसे शराब पीनेके आदी होते थे । वहां यह कानून था कि हिन्दुस्तानी लोग शराब अपने घर नहीं ले जा सकते; जितनी पीना हो, शराबकी दुकान पर बैठकर पीयें । स्त्रियां भी शराबकी शिकार बनी होती थीं । उनकी जो दशा मैंने देखी है, वह अत्यन्त करुणाजनक थी । जो उसे जानता है वह कभी शराब पीनेका समर्थन नहीं करेगा । वहांके हबशियोंको सामान्यत अपनी मूल स्थितिमें शराब पीनेकी आदत नहीं होती । कहा जा सकता है कि उनके म़जदूरवर्गका तो शराबने नाश ही कर दिया है । कई म़जदूर अपनी कमाई शराबमें स्वाहा करते दिखाई देते हैं । उनका जीवन पिरर्थक बन जाता है । और अंग्रेजोंका? सभ्य माने जानेवाले अंगेजोंको मैंने गटारोंमे पड़े देखा है । यह अतिशयोक्ति नहीं है । लड़ाईके समय जिन गोरोंको ट्रान्सवाल छोड़ना पड़ा था, उनमें से एकको मैंने अपने घरमें रखा था । वह इन्जीनियर था । थियोसॉफिस्ट होते हुए भी उसे शराबकी लत थी । शराब न पी हो तब उसके सब लक्षण अच्छे रहते थे । लेकिन जब वह शराब पी लेता था, तब बिलकुल दीवाना बन जाता था । उसने शराब छोडनेका बहुत प्रयत्न किया, मगर जहां तक मैं जानता हूँ, वह अन्त तक इसमें सफल न हो सका । दक्षिण अफ्रीकासे वापिस हिन्दुस्तानमें आकर भी मुझे शराबके दुखद अनुभव ही हुए हैं । कितने ही राजा-महाराजा शराबकी बुरी आदतके कारण बरबाद हो गये हैं और हो रहे हैं । जो उनके विषयमें सच है, वह थोड़े-बहुत प्रमाणमें अनेक धनिक युवकोंको भी लागू होता है । (10-10-’42) म़जदूर-वर्गकी स्थितिका अभ्यास किया जाय, तो वह भी दयाजनक ही है । ऐसे कड़वे अनुभवोंके बाद मैं शराबका सख्त विरोधी बना हूँ, तो इसमें आश्चर्यकी कोई बात नहीं है । एक वाक्यमें यदि कहूँ तो शराबसे मनुष्य अपने शरीर, मन, और बुध्दिको क्षीण करता है और पैसा बरबाद करता है ।
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