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2. हवा

(31-8-’42)

हवा शरीरके लिए सबसे ज़रूरी च़ाज है । इसीलिए ईश्वरने हवाको सर्वव्यापी बनाया है और वह हमें बिना किसी प्रयत्नके मिल जाती है ।

हवाको हम नाकके द्वारा फेफडोंमे भरते हैं । फेफड़े धौंकनीका काम करते हैं । वे हवाको अन्दर खींचते हैं । और बाहर निकालते हैं । बाहरकी हवामें प्राणवायु होती है । वह न मिले तो मनुष्य जिन्दा नहीं रह सकता । जो हवा फेफड़ोसे बाहर आती है, वह जहरीली होती है । अगर यह जहरीली हवा तुरन्त इधर-उधर न फैल जाये, तो हम मर जायें । इसलिए घर ऐसा होना चाहिये, जिसमें हवा अच्छी तरह आ-जा सके और सूर्य-प्रकाशके आनेका रास्ता भी हो ।

हवाका काम रक्तकी शुध्दि करना है । मगर हमें फेफड़ोंमें हवा भरना और उसे बाहर निकालना ठीक तरहसे नहीं आता । इसलिए हमारे रक्तकी शुध्दि भी पूरी तरह नहीं हो पाती । कई लोग मुंहसे श्वास लेते हैं । यह बुरी आदत है । नाकमें कुदरतने एक तरहकी छलनी रखी है, जिससे हवा छनकर भीतर जाती है, और साथ ही गरम होकर फेफडोंमें पहुँचती है । मुंहसे श्वास लेनेसे हवा न तो स़ाफ होती है और न गरम ही हो पाती है ।

इसलिए हर एक मनुष्यको चाहिये कि वह प्राणायाम सीख ले । यह क्रिया जितनी आसान है, उतनी ही आवश्यक भी है । प्राणायाम कई तरहके होते हैं । उन सबमें उतरनेकी यहां आवश्यकता नहीं है । मैं यह नहीं कहना चाहता कि उनका कोई उपयोग नहीं है । मगर जिस मनुष्यका जीवन नियम-बध्द है, उसकी सब क्रियायें सहज रुपसे होती हैं । इससे जो लाभ होता है, वह अनेक प्रक्रियाओंके करनेसे भी नहीं होता ।

चलते, फिरते और सोते व़क्त अगर लोग अपना मुंह बन्द रखे, तो नाक अपना काम अपने-आप करेगी ही । सुबह उठकरी जैसे हम मुंह साफ करते हैं, वैसे ही हमें नाक भी स़ाफ करनी चाहिये । नाकमें मैल हो तो उसे निकाल डालना चाहिये । उसके लिए उत्तमसे उत्तम वस्तु साफ पानी है । जो ठंडा पानी सहज न कर सके, वह कुनकुना पानी उस्तेमाल करे । हाथमें या एक कटोरेमें पानी लेकर उसे नाकमें चढ़ाना चाहिये । नाकके एक छेदसे चढ़ाकर दूसरेसे हम निकाल सकते हैं और नाकके द्वारा पानी पी भी सकते हैं ।

फेफडोंमें शुध्द हवा ही भरनी चाहिये । इसलिए रातको आकाशके नीचे या बरामदे में सोनेकी आदत डालना अच्छा है । हवा से सरदी लग जायगी, यह डर नहीं रखना चाहिये । ठंड लगे तो ज़्यादा कपड़े हम ओढ़ सकते हैं । ओढनेका कपडा गले से ऊपर नहीं जाना चाहिये । अगर सिर ठंडको बरदास्त न कर सके तो उस पर एक रुमाल बांध लेना चाहिये। मतलब यह कि नाक को, जो कि हवा लेनेका द्वार है, कभी ढंकना नहीं चाहिये ।

सोते समय दिनके कपड़े उतार देने चाहिये । रातको कम कपड़े पहनने चाहिये और वे ढीले होने चाहिये । शरीरको चद्दरसे ढंके तो रखना ही है, इसलिए वह जितना खुला रहे उतना ही अच्छा है । दिनमें भी कपड़े जितने ढीले पहने जायं उतना ही अच्छा है ।

हमारे आसपास की हवा हमेशा शुध्द ही होती है, ऐसा नहीं होता । और न सब जगहकी हवा एकसी ही होती है । प्रदेशके साथ हवा भी बदलती है । प्रदेशका चुनाव हमारे हाथमें नहीं होता । मगर घरका चुनाव थोड़ा-बहुत हमारे हाथमें ज़रूर रहता है; और रहना भी चाहिये । सामान्य नियम यह हो सकता है कि घर ऐसी जगह ढूंढ़ा जाय, जहां बहुत भीड़ न हो, आसपास गंदगी न हो और हवा और प्रकाश ठीक-ठीक मिल सकें ।

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