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गांधी की तुष्टिकरण नीति के कारण मुस्लिम आक्रामक हुए

मुस्लिमों का तुष्टिकरण के आरोपों के संबंध में कहना है कि यह समझा जाना चाहिए कि देश में हिंदू एवं मुसलमानों में मतभेद शुरू से ही रहे हैं जिसका साम्राज्यवादी ताकतों ने बडी चालाकी से इस्तेमाल किया जिसका परिणाम देश के विभाजन के रूप में सामने आया। गांधीजी के बहुत पहले बाल गंगाधर तिलक सरीखे नेताओं ने राष्ट्रीय संघर्ष के दौरान मुसलमानों के विभाजन की दिशा में ठोस कदम उठाए थे जो लखनऊ दााsषणापत्र में दिखता है। लोकमान्य तिलक, एनी बेसेंट और मोहम्मद जि़ा ने एक फार्मूला तैयार किया था जिसमें मुसलमानों को उनकी आबादी की तुलना में अधिक प्रतिशतता दी गई थी। लखनऊ दाsषणा पत्र के पक्ष में तिलक के स्पष्ट एवं दृढ़ बयान सिद्ध करते हैं कि गांधीजी से बहुत पहले तिलक ने मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति अपनायी थी। `मी नाथूराम गोडसे बोलतोय` के लेखक प्रदीप दलवी इस नाटक को प्रतिबंधित करने के महाराष्ट्र सरकार के फैसले को अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला मानते हैं। यह सत्य को छिपाने तथा संविधान प्रदत्त बुनियादी अधिकारों की रक्षा पर रोक मानते हैं। संविधान अपनी धारा 19(2) व्दारा इस आजादी के दुरुपयोग पर रोक की सुविधा भी (शासन को) देता है। प्रदीप दलवी और उनके जैसे लोगों के सावधानीपूर्वक विश्लेषण की भी जरूरत है। अभिव्यक्ति की आजादी के बहाने वे हत्या के अधिकार की वकालत करते हैं और जो उनसे सहमति नहीं रखते वे घृणा और हिंसा को इससे बढावा मिलने की बात कहते हैं। इस पर विचार करने की जरूरत है कि एक ऐसे व्यक्ति की हत्या जो अहिंसा, शांति और प्रेम की बात करता था और नवजात शिशु की तरह सुरक्षारहित था उसकी हत्या को जायज ठहराना कितना उचित है।

गोडसे नहीं हैं पर उनका विक्षिप्त दर्शन दुर्भाग्य से हमारे साथ है। इस तरह के नाटकों से हमारे विद्यार्थियों में गलत शिक्षा का प्रेसार हो सकता है। इसको केवल साने ने समझा और उसे खारिज करने की बात कही थी।

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