24.‘गांधी मर गया’ |
हम सबको मृत्यु का बडा़ भय लगता है। लेकिन जीवन और मरण दोनों ईश्वर की बडी़ देन हैं । दिन और रात दोनों में बडा़ आनन्द है । दिन में सूरज दीखता है, तो रात में चाँद और असंख्य तारों की शोभा दीखती है । अमावस्या और पूर्णिमा दोनों की वन्दना करनी चाहिए । छोटा बच्चा माँ के दोनों स्तनों से भरपेट दूध पीता है । जीवन और मरण जगन्माता के दो स्तन ही हैं । दोनों में आनन्द है । महात्माजी मरण को भी ईश्वर की कृपा मानते थे । कई बार अपने उपवास के समय कहा करते थे कि ‘मर जाऊँ तो ईश्वर की कृपा ही मानिये।’ सन् 1916-17 की बात है । बिहार के चम्पारन में महात्माजी किसानों का आन्दोलन चला रहे थे । गोरे जमींदार सरकार की मदद से भारी जुल्म करते थे । एक बार एक जवान किसान लाठी की मार से सिर फूट जाने से मर गया । उसकी माँ बूढी़ थी। उसकी वह इकलौता बेटा था । उस माँ के दुःख की सीमा नहीं थी । वह महात्माजी के पास आकर बोलीः ‘‘मेरा इकलौता बच्चा चला गया । उसे किसी तरह जिला दीजिये ।’’ गांधीजी क्या कर सकते थे ? गम्भीर होकर बोलेः ‘‘माँ, मैं तुम्हारे बच्चे को कैसे जीवित करूँ ? मेरी ऐसी शक्ति कहाँ ? ऐसी पुण्याई कहाँ ? और वैसा करना ठीक भी नहीं है । मैं उसके बदले तुम्हें दूसरा बच्चा दूँ ?’’
यह कहकर महात्माजीने उस बूढी़ माँ के काँपते हाथ अपने सिर पर रख लिये
और आँसू सँभालते हुए उस माता से कहाः ‘‘लो लाठी-चार्ज में गांधी मर गया
। तुम्हारा लड़का जिन्दा है और वह तुम्हारे सामने खडा़ है, तुम्हारा
आशीर्वाद माँग रहा है ।’’ |