8. गांधीजी की गिरफ़्तारी |
4 मई 1930 को गाँधीजी ने वाइसराय को दूसरा पत्र लिखा। उस समय वह डांडी से 7 किलोमीटर दूर, एक छोटे से गांव करडी में थे। उन्होंने वाइसराय को फिर 'प्रिय दोस्तू कह कर सम्बोधित किया। उन्होंने लिखा मेरा इरादा है कि मैं अपने साथियों के साथ धरसना पहुंच कर सरकारी नमक फैक्टरी का कब्जा ले लूं। गाँधीजी ने लिखा कि सरकार इस 'हमले" को नमकगकर खत्म करके रोक सकती है जिसे शैतानी से 'हमला' नाम दिया गया है या उन्हें और उनके दल को गिरफ्तार करके रोक सकती है, या सत्याग्रहियों पर निष्ठुर हमला करके रोक सकती है।
गाँधीजी ने धरसना नमक वर्क्स पर कब्जा करने का कारण सत्याग्रहियों पर
अमानुषिक अत्याचार होना बताया था। 'यदि यह इक्का-दुक्का घटनायें होती तो हम उसे अनदेखी कर देते मगर मुझे बंगाल, बिहार, उत्कल, उत्तर प्रदेश, दिल्ली और बम्बई से जो रिपोर्ट मिली हैं उन्होंने गुजरात में हुए अनुभवों की पुष्टि की है। 'कराची, पेशावर और मौास में, लगता है बिना किसी उत्तेजना के गोली चलाई गई। बंगाल में राष्ट्रीय झंडे को छीनने के दौरान सत्याग्रहियों पर बड़ी क्रूरताएं की गइऔ। धान के खेत तक जला दिये गये और खाने की चीज़ें जबरदस्ती छीन ली गई। गुजरात में एक सब्जी बा ज़ार पर रेड की गई क्योंकि दुकानदार सरकारी अधिकारियों को सब्जी नहीं बेचना चाहते थे। 'यह घटनायें उन लोगों के सामने हुइऔ जिन्होंने कांग्रेस के नियमानुसार बिना प्रतिक्रिया दिखाए आत्मसमर्पण कर दिया। 'सत्याग्रह के सिद्धान्त के अनुसार सरकार जितना दमन और गैरकानूनी काम करेगी उतना ही हम दुख और पीड़ा उठायेंगे। स्वेच्छा से सही गई पीड़ा की सफलता निश्चित है। मैं यही बात पिछले पन्द्रह वर्ष़ों से भारत में कहता आ रहा हूं और देश से बाहर 20 से भी अधिक वर्ष़ों से, और अब फिर दुहराता हूं कि हिंसा अहिंसा से ही जीती जा सकती है।"
गाँधीजी ने वाइसराय लार्ड अर्विन से विनती की कि नमक कर को खत्म कर
दें। 'जिसकी आपके कई देशवासियों ने निन्दा की है और जिसका सर्वव्यापक
रूप से विरोध हुआ है और जो सविनय अवज्ञा के रूप में प्रकट हुआ। आप
सविनय अवज्ञा आन्दोलन की निन्दा कर सकते हैं। क्या आप सविनय अवज्ञा
आन्दोलन के स्थान पर सशस्त्र उग्र विरोध चाहेंगे ?" मध्य रात्रि में 12.45 पर भारी जूतों की अवाज से उनकी नपद खुली। सूरत का अंग्रेज जिला मजिस्ट्रेट, दो भारतीय अफसर और तीस सशस्त्र सिपाही साथ लेकर आया था। सशस्त्र सिपाहियों का एक दल शेड में घुस गया और महात्मा गाँधी के मुंह पर टार्च का प्रकाश फेंका। वह उठ गये और मजिस्ट्रेट से पूछा, 'क्या आप मुझे चाहते हैं?" 'तुम मोहनदास करमचन्द गाँधी हो?' जिला अधिकारी ने औपचारिक रूप से पूछा। 'हां', गाँधीजी ने उसी औपचारिकता से उत्तर दिया। अब डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट ने कहा कि वह उन्हें गिरफ्तार करने आया है तो गाँधीजी ने कहा, 'मुझे प्रक्षालन के लिये समय दीजिए।" अधिकारी सहमत हो गया। गाँधीजी ने दांत साफ करते हुए पूछा, 'श्रीमान डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट, आप मुझे किस आरोप में गिरफ्तार कर रहे हैं? क्या सेक्शन 124 के अधीन?" 'नहीं, सेक्शन 124 के अन्तर्गत नहीं। मेरे पास लिखित आदेश है," एक रूखा उत्तर था। गाँधीजी ने कहा, 'यदि आपको एतराज न हो तो कृपा करके मुझे इसे पढ़ कर सुनाइये ?" डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट ने पढ़ा, 'गवर्नरगइन-काऊंसिल, मोहनदास करमचन्द गाँधी के कार्य़ों को भयप्रद तरीके से देखते हुए आदेश देते हैं कि ऊपर लिखे मोहनदास करमचन्द गाँधीजी को सन् 1827 के रेग्यूलेशन 25 के अन्तर्गत सरकार की इच्छानुसार तत्काल कैद करके यरवदा सेंट्रल जेल में भेज दिया जाये।" गाँधीजी ने अपने कागज़ और चीज़ें एक थैले में डालप और प्रार्थना करने के लिये कुछ मिनट और मांगे। डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट, इस बात से भी सहमत हो गया। तब एक आदमी ने एक भजन बोला। फिर गाँधीजी डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट के निकट आ गये जो उन्हें बाहर खड़ी गाड़ी में ले गया। गाँधीजी बम्बई जाने वाली ट्रेन में चढ़ा दिये गये। अधिकारियों ने तय किया था कि उन्हें बोरिवली में उतार कर कार द्वारा यरवदा सेंट्रल जेल, पुणे, ले जाया जायेगा। विदेशी पत्रकारों को इसकी भनक लग गई कि क्या हो रहा है और वे सब बोरिवली स्टेशन पर जमा हो गये और गाड़ी की प्रतीक्षा करने लगे। जब बोरिवली स्टेशन पर गाड़ी खड़ी हुई तो एक अमरीकी संवाददाता ने पूछा, 'श्री गाँधी, क्या आप जाने से पहले कोई सन्देश देंगे?" 'अमरीकी लोगों से कहो कि इस मसले का अध्ययन ध्यान से करें और अपना फैसला उसकी गुण और योग्यता देखकर दें," गाँधीजी ने उत्तर दिया। 'आपको किसी के प्रति कड़वाहट या गुस्सा नहीं है?" संवाददाता ने पूछा। 'नहीं। मुझे पकड़े जाने की बहुत पहले से आशा थी", गाँधीजी ने उत्तर दिया। 'आपके ख्याल में क्या आपकी गिरफ्तारी से सारे भारत में झगड़े-फसाद होंगे?" 'नहीं, मुझे ऐसी आशंका नहीं है। मैं यही कह सकता हूं कि मैंने अपनी पूरी कोशिश की है कि किसी तरह का दंगागफसाद न हो," गाँधीजी ने उत्तर दिया। गाँधीजी एक पर्दे वाली मोटर कार में यरवदा सेंट्रल जेल ले जाये गये। जेल अधिकारियों ने अपने कैदी का विवरण इस तरह लिखा 5 फीट 5 इंच (लगभग 166 सेंटीमीटर) पहचान के निशानः दाई जांघ पर चोट का निशान, दाई आंख की पलक पर छोटा-सा तिल और बाई कोहनी के नीचे मटर के दाने जैसा चोट का निशान। न कोई मुकदमा हुआ, न फैसला और न ही कैद की अवधि निश्चित की गई। गाँधीजी को तब तक जेल में रखा जाना था जब तक सरकार इसे ज़रूरी समझती। जब गाँधीजी की गिरफ्तारी का समाचार चारों ओर फैला तो सब जगह प्रदर्शन हुए, लेकिन लोग अहिंसा पर कायम रहे। बम्बई, दिल्ली, नवसारी, सूरत और अहमदाबाद में हड़ताल की घोषणा की गई। अगले दिन कई अन्य स्थानों में भी हड़ताल फैल गई। विदेशों में भी इसकी प्रतिक्रिया हुई। पनामा के भारतीय व्यापारियों ने 24 घंटे के लिये अपना काम ठप्प कर दिया। सुमात्रा में भी यही हुआ। नैरोबी में भारतीयों ने दुकानें बन्द कर दप। अमरीका से 102 पादरियों ने ब्रिटिश प्रधान मंत्री को एक तार भेजा कि गाँधीजी और भारतीयों के साथ मैत्रीपूर्ण फैसला कर लेना चाहिये। गाँधीजी तथा उनके कार्य़ों के समाचारों से यूरोपियन समाचार पत्र रंग गए। यह देख कर कि गाँधीजी के कितने समर्थक हैं और इस डर से कि कहप यरवदा सेंट्रल जेल पर ही सत्याग्रह न हो जाए, उन्हें गुप्त रूप से पुरन्ौ की पहाड़ियों में स्थित शिवाजी के किले में ले जाया गया। गाँधीजी को आशा थी कि उन्हें किसी भी समय गिरफ्तार कर लिया जायेगा। इसलिए उन्होंने 9 अप्रैल को ही भारतवासियों के लिये एक सन्देश लिखा था जो उनकी गिरफ्तारी के बाद प्रकाशित हुआ। 'यदि यह आन्दोलन जो इतनी अच्छी तरह आरम्भ हुआ, बराबर अहिंसा के सिद्धान्त पर आखिर तक चलता रहे तो वह समय दूर नहीं जब हम पूर्ण स्वराज्य पा लेंगे। इसके साथ-साथ हम दुनिया में ऐसा उदाहरण छोड़ेंगे जो भारत के तथा उसकी प्राचीन परम्पराओं के गौरव के अनुकूल होगा। 'बिना त्याग और बलिदान के मिला स्वराज्य ज्यादा देर तक नहीं टिक सकता। मेरे साथियों और जनता को मेरी गिरफ्तारी से परेशान नहीं होना चाहिये। इस आन्दोलन को मैं नहीं बल्कि ईीवर चला रहा है।
हर गांव वाला अवैध नमक लाए और बनाये, बहनें शराब और अफीम व विदेशी
कपड़ों की दुकानों पर धरना दें। प्रत्येक घर में छोटे-बड़े चर्खा कातें
जिससे हर रोज ढेरों सूत बने। विदेशी कपड़ों की होली जले। |