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6. नमक स्वतंत्रता का नया प्रतीक

छह अप्रैल 1930 की सुबह को जब गाँधीजी बंगले की सीढ़ियों से उतरे तो हर्ष ध्वनि द्वारा हजारों लोगों ने जो रात भर वहां इकट्ठे होते रहे थे उनका स्वागत किया।

गाँधीजी कुछ देर समुद्र में तैरते रहे। जब उनके साथियों ने कहा कि सत्याग्रह आरम्भ करने का समय हो रहा है तो वह बाहर आये। फिर गाँधीजी ने झुक कर मुट्ठी भर नमक उठा लिया।

उस समय गाँधीजी का चेहरा बिलकुल शान्त था, जब उन्होंने मुट्ठी खोल कर सफेद नमक भीड़ को दिखाया। भारत के स्वतंत्रता संग्राम का यह सबसे नया प्रतीक था।

कुछ देर बाद सत्याग्रही एक निकट की खाड़ी में गये जहां जमा नमक की तह तट से मोटी थी। एक दूसरी खाड़ी में पास के गांव के 56 स्वयंसेवकों ने नमक इकट्ठा किया और थैलों में भर कर ले गये।

पूरा कार्य बहुत व्यवस्थित तरीके से किया गया। नेता सीटी द्वारा उन्हें हर चरण का संकेत देता जा रहा था। ऐसा लगता था मानो दल को पहले काफी प्रशिक्षण दिया गया हो।

उस सुबह करीब 500 किलो नमक इकट्ठा किया गया। दोपहर को पुलिस ने वह नमक जब्त कर लिया। लेकिन जैसे ही पुलिस गई, गांववालों ने नमक फिर इकट्ठा किया और गांव के लोगों में बांट दिया।

नमक कानून तोड़ दिया गया था। भारतीयों को कुछ कर गुजरने का संकेत मिल गया था। एक प्रेस वक्तव्य में गाँधीजी ने लोगों से हर कहप नमक कानून का उल्लंघन करने के लिये कहा। जो लोग साफ करके नमक बनाना जानते हैं उन्हें यह कार्य दूसरों को भी सिखाना चाहिये। लेकिन गांववालों को यह स्पष्ट तौर से बता देना मेरा कर्तव्य है कि नमक बनाने से उन्हें गिरफ्तारी, जुर्माने और कैद का खतरा है। कानून का उल्लंघन खुले रूप से होना चाहिये।

नमक कानून को राष्ट्रीय सप्ताह के दौरान बराबर भंग किया जाना था। लोगों से विदेशी कपड़े और अन्य चीजों का बहिष्कार करने और उसके बदले खादी पहनने के लिए कहा गया। लोगों से कहा गया कि वे शराब पीना छोड़ दे।

सम्पूर्ण देश में ऐसे पैम्फलेटों की बाढ़-सी आ गई जिनमें समुद्र पानी से नमक बनाने का तरीका दिया हुआ था। भारत के लम्बे समुद्र तट पर गांववाले समुद्र में बर्तन लेकर घुसने लगे।

समुद्र से दूर के भागों में भी लोग नमक बनाते। जन सभायें होतप, उत्तेजक भाषण दिये जाते और बड़े-बड़े जुलूस निकलते। भारत के एक कोने से लेकर दूसरे कोने तक विदेशी कपड़ों की होलियां जलाई गइऔ। शराब की दुकानों पर धरना दिया जाता। कुछ सरकारी कर्मचारियों ने इस्तीफे दे दिये।

गुजरात में सविनय अवज्ञा आन्दोलन तेज़ी से फैला। सरकार ने नेताओं को गिरफ्तार कर लिया। लेकिन नये नेता उनका स्थान लेने के लिए आगे आये। गाँधीजी ने गिरफ्तार होने वालों को बधाई दी। "कैद और इस तरह की बातें ऐसी परीक्षाएं हैं जिसमें से सत्याग्रही को गुजरना ही पड़ता है," उन्होंने कहा।

उन्होंने लोगों से कहा, "एक अहिंसक व्यक्ति की मुट्ठी में नमक भारत के सम्मान का प्रतीक है। हाथ नमक नहीं देगा चाहे हाथ के टुकड़े ही क्यों न कर दिए जाएं। लोगों को अपने पास के नमक की रक्षा तब तक करनी चाहिये जब तक इस प्रयास में वे टूट न जायें। लेकिन यह सब उन्हें बिना क्रोधित हुए करना चाहिये।"

13 अप्रैल को दांडी में गाँधीजी ने महिलाओं की सभा को सम्बोधित करते हुए कहा कि उन्हें भी राष्ट्रीय आन्दोलन में शामिल हो जाना चाहिये।

गाँधी के निर्देशों का पालन कितनी अच्छी तरह से हुआ, यह तब पता चला जब पुलिस ने बम्बई में कांग्रेस हाउस पर छापा मारा। वे लपक कर सीढ़ियां चढ़ गये और छत पर पड़े नमक के बत्तीस बर्तनों को तोड़ डाला। इस काम में उन्हें दो घंटे लगे। तब तक इमारत के आसपास और इस ओर आने वाली सड़कों पर 60,000 लोगों की भीड़ जमा हो गई।

जब सिपाही छत से नीचे आये और आफिस में घुसने का प्रयास किया, तो छह औरतों ने उनका रास्ता रोका। उनकी नेता ने कहा, "आप चाहें हमें गिरफ्तार कर लें या कुछ भी करें लेकिन जिस स्थान पर हमारी डय़ूटी है हम उसे छोड़ कर नहीं जायेंगे।"

सिपाही धैर्य खोकर औरतों को एक ओर धकेलने लगे। बाहर भीड़ राष्ट्रीय गीत गा रही थी। तब उन्होंने अपना ध्यान नीचे पड़े नमक के बर्तनों की ओर दिया। लेकिन एक सौ स्वयंसेवकों के दल ने उन बर्तनों को घेर लिया था। और यह घेरा बार-बार हमला करने पर ही टूटा। स्वयंसेवकों ने प्रस़ता से हमले झेले मगर सिपाहियों को कुछ नहीं कहा। यहां तक कि उन्हें पीछे भी नहीं धकेला। बाहर की भीड़ भी बिलकुल शान्त रही।

यह अहिंसक आन्दोलन का अनोखा प्रदर्शन था और इसने गाँधीजी के हृदय को अवश्य हर्षित किया होगा। भीड़ आसानी से थोड़े से सिपाहियों को पकड़ सकती थी लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। स्वयंसेवकों के धैर्य, साहस और देशभक्ति देखकर कई और लोगों ने सत्याग्रह करने के लिये अपना नाम लिखाया।

जैसे ही आन्दोलन अधिक फैला गैर कानूनी तरीके से बनाया या इकट्ठा किया हुआ नमक खुले आम शहरों के बाज़ारों में बिकने लगा। अहमदाबाद में अवैध तरीके से सत्याग्रह के पहले सप्ताह में बनाया नमक, जिसकी कीमत 11,000 रुपये थी, बेचा या बांट दिया गया। गाँधीजी द्वारा डांडी में उठाया नमक इतनी निम्न कोटि का था कि उपयोग में भी नहीं लाया जा सकता था। लेकिन इसका मूल्य प्रतीकात्मक था। जब उसकी नीलामी हुई तो उसकी कीमत 1600 रुपये मिली।

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