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'मंगल-प्रभात'

गांधीजीने यरवडा जेलका नाम 'यरवडा मंदिर' रखा था। वहां उन्हें बाहरके कुछ अखबार पढ़नेको मिलते थे और आश्रमसे खत भी अच्छी तादादमें आते थे; फिर भी हम कह सकते हैं कि वह फुरसतका समय उन्होंने सूतयज्ञमें, चरखेकी भक्तिमें और गीताके चिन्तनमें ही बिताया। उस अरसेमें साबरमती आश्रमके जीवनमें ज्यादा जान फूंकनेकी जरुरत है, ऐसी मांग दो-एक भाईयोंकी  ओरसे आनेसे उन्होंने आश्रमवासियोंको हफ्तेवार खत लिखना शुरु किया। कोई भी काम शुरु किया जाय तो वह बराबर होता रहना चाहिए, ऐसा गांधीजीका आग्रह होनेसे हर मंगलको सुबहकी प्रार्थनाके बाद एक प्रवचन लिख भेजनेका उन्होंने संकल्प1 किया। उस संकल्पका पहला फल है आश्रमके व्रतों2 पर उनका यह भाष्य3 पहले यह 'व्रत-विचार' के नामसे छपा था।

नमुनेदार-आदर्श-कैदी की हैसियतसे सरकारको सब तरहसे अभय-दान देनेवाले4 गांधीजीने जेलमें से स्वदेशीके बारेमें कुछ भी न लिखनेका तय किया था। इसलिए 'व्रत-विचार' में स्वदेशीकी बात रह गई थी। बाहर आकर उन्होंने स्वदेशी-व्रत पर एक लेख लिखा, जो 'नवजीवन' में छपा है। अबकी बा रवह लेख इस पुस्तकमें शामिल करके आश्रम-व्रतोंकी विचारणा5 पूरी की है ।

जैसा कि ऊपर कहा गया है, ये प्रवचन मंगलवारके प्रभातको लिखे जाते थे, इसलिए इस प्रवचन-संग्रह6 का नाम 'मंगल-प्रभात' ही रखा गया है। हमारे कौमी जीवनमें जब निराशा7 का घोर साम्राज्य फैला था, तब जिन व्रतोंने राष्ट्रीय जीवन में आशा, अपने-आप पर भरोसा, फुर्ती और धार्मिकता8 की हवा पैदा की, उन्हीं व्रतोंने एक नयी संस्कृति - नये तमद्दुनका मंगल-प्रभात शुरु किया, ऐसा अगर हम मानें तो वह कुछ ज्यादा न होगा।

दत्तात्रेय बालकृष्ण कालेलकर


1. पक्का इरादा । 2. अहदों । 3. तफसीर । 4.सलामती बख्शनेवाले । 5. तफसीर ।  6. मजमूआ । 7. मायूसी । 8. दीनदारी ।

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