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सद्भावना के दो शब्द

प्रसन्नता की बात है कि 'हिन्दुस्तानी प्रचार सभा' द्वारा प्रकाशित 'हिन्दुस्तानी ज़बान' पत्रिका में छपे गाँधीवादी विचारों पर आधारित अधिकांश लेखों को अलग से 'गाँधी और गाँधी-मार्ग' पुस्तक के रूप में संकलित किया गया है।

महात्मा गाँधी के विचारों की जितनी पुनरावृत्ति होती है, उतनी ही गहराई से वे हमारे दिलो-दिमाग़ में उतरते हैं। पुस्तकाकार प्रकाशित लेखों की पुनरावृत्ति पाठकों के सामने नये संदेश प्रस्तुत करेगी, मेरा यह पूरा विश्वास है।

विडम्बना यह है कि आज अलगाववाद और आतंकवाद की जड़ें गहराई से फैलती जा रही हैं और लोग हैं कि वे गाँधीजी के बताये आसान रास्ते पर चलने से परहेज़ करने लगे हैं। भारत ही नहीं, भारतेतर देशों के नवजवान गुमराह हो रहे हैं। उनको जीवन का मोल समझानेवाला और उनके हाथों में विवेक की मशाल पकड़ानेवाला एकमात्र रास्ता उनकी आँखों के सामने है, परन्तु उनकी आँखों पर पट्टी बँधी हुई है। इसका नतीज़ा हमारे सामने है। सत्य और अहिंसा जैसे सशक्त शस्त्रों के होते हुए भी हम असुरक्षा के शिकार होते जा रहे हैं। हमारी सामाजिक और राजनीतिक संरचना खोखली सिद्ध होने लगी है।

महात्मा गाँधी के संदेशों की ख़ासियत यह है कि हम उन पर अमल करके अपना ही नहीं, दूसरों का भी जीवन सँवार सकते हैं, सामाजिक चेतना ला सकते हैं, देश के उद्धार में मददगार साबित हो सकते हैं। बल्कि मैं तो यहाँ तक कहूँगा कि मासूम ज़िन्दगियों को मानवीय गरिमा प्रदान करने की दिशा में गाँधी-मार्ग के अलावा और कोई मार्ग है ही नहीं।

आज कुरीतियों और विसंगतियों से लड़ने का एकमात्र रास्ता गाँधी-मार्ग ही तो है!

जहाँ-जहाँ गाँधी के विचार हैं, गाँधी के सिद्धान्त हैं, गाँधी की वाणी है, वहाँ तक हम लोग 'हिन्दुस्तानी प्रचार सभा' के माध्यम से पहुँचने का निरन्तर प्रयास करते हैं।

पुस्तक का संपादन 'सभा' की निदेशक डॉ. सुशीला गुप्ता ने बड़ी कुशलता से किया है, मैं उन्हें बधाई देता हूँ।

- डॉ. इस्ह़ाक जमख़ानावाला

कार्याध्यक्ष, हिन्दुस्तानी प्रचार सभा

मुंबई

4 सितंबर 2006

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