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जुगतराम दवे

 

74. ‘आनंदी सत्याग्रही’

बारडोली और गुजरात के श्रेष्ठ सत्याग्रही स्यादलावासी किसान मोरारभाई बडे़ विनोदी थे । चाहे जैसे आफत हो उनके पास आनंदरूप बन जाती । सत्याग्रह की लंबी जेलयात्राओं में मेरे जैसे कितने ही साथियों को उन्होंने हँसते-हँसाते जेल की अवधि कटवा दी । गाँव से कितने ही लोग तकरार लेकर उनके पास आते, उन्हें हँसा-खिलाकर एक-दूसरे से मिलाकर वे उन्हें विदा करते ।

संतति के लिए वृद्ध पिता ने उनकी दूसरी शादी करवाई । हमारे जैसे कार्यकर्ताओं की सीख हँसी में उडा़कर वे दूसरी बार लग्न कर आये । पहली ने नयी को अपनी बेटी की भाँति रखा, अतः सौत का क्लेश उनके घर में हुआ ही नहीं ।

एक बार गाँधीजी के पास हल्की-फुल्की विनोद बातें हो रहीं थीं । महादेवभाई ने मोरारभाई की दो पत्नियों की चुगली बापू से की । बापू ने मोरारभाई से पूछा, ‘आप राम को नहीं मानते ?’ मोरारभाई बोलेः ‘बापू ! राम को मानते हैं तो उनके पिता को कैसे न माने ?’

बापू हँस पडे़ ।

मोरारभाई के आनंदी स्वभाव से स्वराज की लडा़ई बहुतों के लिए आसान-सी बन गई थी। स्वराज्य के पश्चात् कुछ ही वर्षों में वे स्वर्गवासी हुए । परन्तु सर्वोदय की रचना के महान त्याग को सरल भाव देने के लिए उनकी बहुत जरूरत थी ।