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जुगतराम दवे

 

72. ‘आश्रम-जीवन’

अहमदाबाद में साबरमती नदी के किनारे गाँधीजी का आश्रम है ।

आश्रम में गाँधीजी रहते, कस्तूरबा रहती और बहुत-से भाई – बहनें बालक – बालिकाएँ रहती थीं । उनमें गुजरात के थे, महाराष्ट्र के थे, पंजाब के थे, सिंध के थे, मद्रास के थे, नेपाल के भी थे, हिंदुस्तान के थे और हिंदुस्तान के बाहर के गोरे और चीनी भी आकर रहते थे ।

वे सब खादी पहनते और नियमित चरखा चलाते । सुबह चार बजे उठकर प्रार्थना के लिए एकत्रित होने तथा फिर संध्या समय भी प्रार्थना के लिए मिलते । वे श्लोक पढ़ने, भजन गाते और रामधुन लगाते, कभी ‘गीता’ का पारायण भी करते । प्रार्थना के पश्चात् गाँधीजी प्रवचन करते ।

आश्रम की विशाल रसोई आश्रमवासी बहनें ही चलातीं, वे बारी-बारी से रसोई पकातीं और कठोर में अनाज साफ करतीं । समग्र आश्रम एक ही रसोई में भोजन करता था । इस रसोई में मिर्च-मसासा, हींग बघार आदि नहीं होता था । सादा और स्वच्छ भोजन बनाया जाता । गाँधीजी स्वयं परोसते । आश्रम में हरिजन सबके साथ रहते और सभी के साथ आश्रम की रसोई में काम करते तथा भोजन ग्रहण करते ।

आश्रम में स्वच्छता का बहुत ध्यान रखा जाता था । आश्रमवासी स्वयं पाखाने की सफाई करते थे ।