| | |

आदम घोडी़वाला

 

70. ‘क्या हम प्रासंगिक हैं ?’

क्या गाँधीजी आज के युग में प्रासंगिक हैं ? यह प्रश्न बार-बार पूछा जाता है । गाँधीजी प्रासंगिक हैं या नहीं – यह मूल प्रश्न नहीं हैं । असल सवाल है कि क्या हम स्वयं, अभी और यहाँ प्रासंगिक हैं ?

आज के एकमात्र ‘सुपरपावर’ की वैश्वीकरण और मुक्तबाजार की नीति से हमारे गरीब देशबांधवों की, गरीबों की दुर्दशा हो रही है – यह लगने या मान्य करने पर भी, आज के किसी प्रासंगिक दिखनेवाले, तथाकथित महात्मा में इतनी नैतिक हिम्मत है कि ‘सुपर पावर’ के समक्ष कह सकें कि हमारे गरीबों को छाछ-रोटी मिलने दो । तुम्हारा पित्जा, बर्गर, कोकाकोला और पेप्सी हमारे सिर पर मत थोपो । हिम्मतवान के लिए गाँधीजी आज भी प्रासंगिक हैं । बुजदिल, डरपोक के लिए गाँधी तब भी प्रासंगिक न थे, आज भी नहीं हैं ।