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हरिप्रसाद व्र. देसाई

 

63. ‘नयी पीढी़ जमानी है’

श्री जीवनलालभाई के कोचरब के बँगले में सत्याग्रह आश्रम की छोटी-सी शुरूआत हुई । मैं प्रतिदिन संध्या समय सैर के लिए जाता था। अबसे सत्याग्रह आश्रम ही मेरा रोज का प्रिय स्थान बन गया ।

गाँधीजी के साथ वहाँ अनेक विषयों पर विस्तार से बातें होती थीं । आरोग्य, खुराक, धर्म, राज्य, साहित्य, खेती, बुनाई, समाज-सुधार, शिक्षा, सेवा आदि विषयों पर ढेर बातें करने का उन्हें उन दिनों अवकाश था । वे अभी महात्मा नहीं बने थे और देश की प्रवृत्तियों में उनका क्या स्थान है – यह विचार कर रहे थे । वर्ष तक देश का अवलोकन करने की सलाह गोखले ने उन्हें दी थी और तब तक सार्वजनिक रूप से एक भी भाषण न देने की आज्ञा भी थी । जिस दिन गोखले की आज्ञा का एक वर्ष पूरा हुआ, उस दिन मैं गाँधीजी के पास था । मैंने पूछाः “अब आप यह कहिए, देश में आपने क्या देखा ?”

गाँधीजी (गहरी साँस भर कर) ‘हर ओर नाटक चल रहा है । देश के लिए मरने को कोई तैयार नहीं ।’

मेरा हृदय बिंध गया, फिर भी मैंने पूछाः

‘यह आप क्या कर रहे हैं ? लोकमान्य, मालवीयजी, बंगाली नेतागण, इन सबसे आप मिले हैं, फिर भी ऐसा कहते हैं ?’

गाँधीजीः ‘मैं बहुत खिन्न हूँ । बडे़ लोगों के लिए कहने में मुझे दुख हो रहा है । परन्तु बहुत विचार करके ही मैंने कहा है ।’

मैंने कहाः ‘और वे बम फेंकनेवाले ? क्या वे भी मरने के लिए तैयार नहीं ?’

गाँधीजीः ‘वे अवश्य अपवाद हैं । वे मरने के लिए तैयार हैं, पर उनकी रीति मुझे पसंद नहीं है ।’

तत्पश्चात् शांति के मार्ग पर, किसी का खून बहाने के जंगली मार्ग के विरुद्ध, बिना मारे अपने अहिंसावाद की चर्चा की और बोलेः ‘यदि देश मेरा रास्ता स्वीकारे तो उसे बताते हुए मैं उम्मीद रखता हूँ कि इस मार्ग से स्वराज्य प्राप्त हो सकेगा । दक्षिण अफ्रिका में जो हुआ वह यहाँ भी हो सकता है । मैं वहाँ की पूँजी पर नहीं जीना चाहता । अब मुझे नयी पूँजी प्राप्त करके नयी पीढी़ जमानी है ।’