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मुकुलभाई कलार्थी

 

54. ‘भूल-चूक माफ करना’

बापू रविवार की दोपहर तीन बजे मौन धारण करते थे । यह सोचकर कि किसी अधिकारी से मिलने का प्रसंग आये तो रवि और सोम दोनों दिन कुछ समय बात करने के लिए रहे । एकबार तीन बजने में दो – चार मिनट बाकी थे कि वल्लभभाई बोलेः ‘अब पाँचेक मिनट ही बचे हैं । आपको जो  सौंपना, कहना हो कह डालिए ।’

महादेवभाई ने यह सुनकर कहा, ‘आप तो मानो विल (वसीयत) बनाने के लिए कह रहे हैं ।’

बापू बोले, ‘लो, फिर कह ही दूँ। कोई भूल-चूक हुई तो माफ करना।’ और खिलखिला कर हँसने लगे ।

उन्हें एक मधुर स्मरण हँसा रहा था। बापू ने कहाः ‘बा बेचारी कहने लगी, भूल-चूक हुई हो तो माफ करना ।’

वल्लभभाई ने पूछा ‘कब ?’

बापूः ‘अरे, मुझे पकड़ने आये तभी तो । आँख से आँसू झर रहे हैं और कहती है, भूल-चूक माफ करना ।’ उस बेचारी को तो लगा होगा कि इस जन्म में मिलना हो या न हो और बिना माफी माँगे यदि मर गये तो क्या होगा ?