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बलवंतसिंह

 

48. ‘निःस्वार्थ सेवा से ही हृदय-स्पर्श हो सकता है ।’

एक विशेष दिन, सावली नामक गाँव में देवी को बकरे की बलि देने का कार्य सामूहिक रूप में हो रहा था । सभी लोग एक-एक बकरा लेकर वहाँ जाते और देवी के समक्ष उसे बलि चढा़कर उसका मांस पका कर खाते । इसका पूरा वर्णन मैंने बापू को लिखा था। अत्यन्त भयानक दृश्य था, पेड़ पर बकरे टंगे हुए थे । मेरे पत्र के उत्तर में बापू ने यह लिखा थाः

देवी के समक्ष बकरों के भोग का वर्णन दुखद है । यह सदियों की भ्रामक मान्यताएँ हैं, हम इसे एक क्षण में दूर नहीं कर सकते । लोग समझ सकें ऐसी सेवा जबतक हमने की नहीं, तब तक हमारी बात सुनने के लिए उनके हृदय तैयार नहीं होंगे । बुद्धि का विकास तो इससे भी कठिन है । निस्वार्थ सेवा से हृदय-स्पर्श शीघ्र हो सकता है, इस लिए आज तो हमें इन बलि चढा़नेवालों में सेवाकार्य करना है । मौका मिले ही उनका भ्रम दूर करवायेंगे ।

स्मरण रखिए कि जो दृश्य आपके निरक्षर लोगों में देखा है वही दृश्य शिक्षित लोगों में, कलकत्ता में, बहुत बडे़ प्रमाण में दृष्टिगत होता है ।

बापू के आशीर्वाद