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रविशंकर (महाराज) व्यास

 

40. ‘जितना है उतना तो उपयोग कीजिए ।’

एक दिन चार-पाँच युवा मेरे पास आये । बात-बात में उन्होंने पूछाः ‘महाराज ! हमारे अंडा खाने के बारे में आपकी क्या राय है ।’

मुझे लगा, उन्हें क्या उत्तर दूँ ? परन्तु झट मेरे मुँह से निकल गयाः

‘अरे, तुम्हें अंडा खाना है या नहीं, इसमें मुझसे क्या पूछते हो ? यह तो अंडा देनेवाली माँ से ही पूछ कर देखो ना ।’

‘परन्तु दादा, निर्जीव अंडा खायें तो ?’

‘मुझे यह तो बताओ कि तुम्हें अंडा किसलिए खाना है ?’

‘किसलिए ? अंडो में प्रचुर विटामिन और प्रोटीन होता है।’

एक ने कहा ।

‘तुम्हारे पास जितनी विटामिन है, उसका तो उपयोग करो। फिर कमी हो तो पूछना ।’

इस बात पर मुझे गाँधीजी की एक बात याद आ गई और मैंने उन युवाओं को कह सुनाईः

गाँधीजी तो प्रयोग वीर थे । अनेक प्रकार के प्रयोग किया करते थे। उनका जीवन यानी प्रयोग था । एक दिन गाँधीजी के मन में विचार आया कि यदि मनुष्य कच्चा अनाज खाने की आदत डाल ले तो उसकी कितनी शक्ति बच जाये और कम वस्तु से ज्यादा ताकत प्राप्त कर सके ।

गाँधीजी को विचार आया तो फिर क्या पूछना ?

अपने से ही प्रारम्भ कर देते । यही उनके जीवन की विशेषता थी । मुझे भी उनकी बात उचित लगी और मैं भी उनके प्रयोग में शामिल हो गया । तीन-चार दिन तो बापू को इस प्रयोग से खूब स्फूर्ति रही, परन्तु फिर उन्हें दस्त होने लगे ।

एक दिन मैं उनके कमरे में किसी काम से गया ।

बापूने मुझसे पूछा ‘तुम्हारा प्रयोग चल रहा है ?’

‘हाँ । मैंने संक्षिप्त उत्तर दिया ।’

‘वजन कम हुआ है ?’

‘पौना सेर कम हुआ है ।’

‘और शक्ति ?’

‘थोडी़ कम हुई लगती है ।’

‘तुम क्या काम करते हो ?’

मैंने अपने हिस्से में आनेवाले समस्त कार्य गिनवा दिये ।

‘यह सब काम हो जाता है ?’

‘हाँ, इसमें कोई कठिनाई नहीं आती ।’

‘तो फिर कैसे कह रहे हो कि शक्ति थोडी़ घटी है ? ‘इस बनिये को अब मैं क्या जवाब दूँ । फिर स्वयं बापू ने जो भाष्य किया उसे मैं कभी भूल नहीं सकूँगाः

‘तुम्हें पता है ? उपयोग में आनेवाली शक्ति से अधिक शक्ति शरीर में उत्पन्न हो तो उसके विकार पैदा होता है । यह बहुत समझने योग्य बात है । इसलिए जितना काम करना हो, उतनी ही शक्ति उत्पन्न करनी चाहिए । अधिक शक्ति से कोई लाभ नहीं होता, उल्टे चित और इंद्रियों में विकार पैदा होता है ।’