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जुगतराम दवे

 

38. ‘नवजीवन’

आश्रम में अब गाँधीजी का काम जमने लगा था । उन्होंने ‘नवजीवन’ नाम से एक साप्ताहिक पत्र निकालने का निश्चय किया । इसका प्रवेशांक 7.9.19 को निकला । इस कार्य के लिए अहमदाबाद में एक छोटा-सा प्रेस रख लिया । काम दिनोंदिन बढ़ रहा था । प्रेस के रोज के आदमी कम पड़ रहे थे गाँधीजी को इस संकट के अवसर पर स्वामी आनंद याद आये । उन्हें ज्ञात था कि स्वामी को छापने-छापने के काम का अनुभव है । यह विश्वास था कि वे इस नये कार्य को विकसित कर सकेंगे ।

गाँधीजी ने उन्हें बुलवाया और ‘नवजीवन’ के साथ उन्हें जोत दिया । वे 1919 के अंतिम हिस्से में ‘नवजीवन’ में आये होंगे । इस कार्य को स्वीकार करने के पश्चात् स्वामी ने एक दो महीने में मुझे भी बडौ़दा से बुलवा लिया ।

1919-20 के दिन थे । गाँधीजी की ओर से सविनय अवज्ञा की, हड़ताल की और उपवास की हाँक पड़ रही थी, जिसके कारण नवजीवन प्रेस में रोज उनके हस्तलिखित लेखों का प्रवाह चला आ रहा था । ‘नवजीवन’ में आठ पृष्ठों के स्थान पर प्रत्येक अंक में 12-16 पृष्ठ होने लगे थे । चूडी़ ओल की संकरी गली में, उससे भी संकरे नवजीवन प्रेस में, रात-दिन हलचल मची रहती । छपे हुए पृष्ठ का टाइप धुल कर बदलने के पहले ही नये पृष्ठ छापने की ताकीद आ जाती थी । उसमें बहुत बार गाँधीजी के पेन्सिल से लिखे पृष्ठों को पढे़ने की कसरत स्वामी और उनके सहायकों के लिए एक अग्निपरीक्षा ही होती । मशीन-चालक, कंपोजिटर, प्रूफरीडर आदि सभी के लिए दिन के चौबीस घंटे कम पड़ते थे । रतजगा पर रतजगा करने में वे मानो एक दूसरे से स्पर्धा कर रहे होते । परन्तु इस क्षमता में स्वामी सबसे आगे निकल जाते । तीन रात्रियों के अखण्ड जागरण के पश्चात् चौथी सुबह भी प्रूफ देखकर छापने की आज्ञा देने में वे तत्पर रहते ।

‘नवजीवन’, ‘यंग इन्डिया’ में बापू ने अपने स्फुल्लिग जैसे तेजस्वी लेखों द्वारा आग बरसाना प्रारम्भ किया था । चूडी़ओल का छापाखाना उसके लिए बहुत छोटा पड़ता था । स्वामी ने सारंगपुर की ओर एक विशाल मकान ढूँढ निकाला । मौलाना मोहम्मदअली ने अपने बंद प्रेस की समस्त सामग्री बापू को सौंप दी । वह सब इस नये मकान में व्यवस्थित कर दी गई ।