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काका कालेलकर

 

33. ‘जेल के दौरान अध्ययन’

1921 या 1922 में बापू पहली बार भारत की जेल यरवडा – मैं कैद हुए थे । उस समय जेल के पुस्तकालय से बापू ने कितनी ही पुस्तकें मंगवाकर पढी़ होंगी । उनमें से दो किताबें उन्हें विशेष पसंद आईं । ‘सीकर्स आफ्टर गाड’ और किपलिंग की ‘जंगलबुक’ । इस समय उन्होंने मुझे ये पुस्तकें पढ़ने का सुझाव दिया। सदभाग्य से जेल के पुस्तकालय में दोनों पुस्तकें मिल गईं । ‘सीकर्स आफ्टर गाड’ में सेनेका, एपेक्टिस और माक्स आपेरेलियस – तीन प्राचीन रोमनों के जीवन पर तीन दीर्घ निबन्ध थे । बापू की उस पहली जेल में पढ़ने के लिए मैंने अपनी किताब ‘डिक्लाइन एन्ड फोल आफ द रोमन एम्पायर’ उन्हें भिजवायी थी, बापू को याद रही । मुझसे कहने लगे ‘सीकर्स आक्टर गाड’ पुस्तक में मानो समग्र निबन्ध का निचोड़ आ गया है । यह पुस्तक तुम अवश्य पढ़ना ।

इन पाँच-छह महीनों के दौरान गाँधीजी के पास जो बहुत – सी पुस्तकें आईं, उनमें से दो का मुझे आज भी स्मरण है । एक थी एंटन सिंक्लेयर की ‘गूज स्टेप’ (Goose Step) जिसमें आज के अमरिका के सडे़ हुए शिक्षण तंत्र का सप्रमाण चित्र उपस्थित किया गया है ।

एक प्रेरक पुस्तक पढी़, वह थी नेत्रहीन नेत्री हेलन कॅलर की उत्तर जीवन – कथा ‘मिडस्ट्रीम’ (Midstream) । बापू ने उसकी पूर्व जीवन की कथा ‘द स्टोरी आफ माई लाईफ’ पढी़ थी और उसकी बहुत प्रशंसा की थी । इसलिए जेल में पहले ‘मिडस्ट्रीम’ पढी़ थी तो बाहर आने पर ‘द स्टोरी आफ माई लाइफ’ (श्री मगनभाई देसाई ने इसका गुजराती अनुवाद ‘अपंग की प्रतिभा’ नाम से किया है ।)

जेल में मेरी प्रमुख दिलचस्पी बापू की छोटी से छोटी सेवा करने और जब वे फुरसत में हो तो उनके साथ बातें करने में थी । उनके छोटे-मोटे काम में ही समय चला जाता और यही मेरा सबसे बडा़ आनन्द होता । बर्तन माँजना, बिस्तर बिछाना, उनकी वस्तुएँ उचित स्थान पर रखना, जरूरत की चीज झट निकाल कर देना, उनके लिए पकाना, उनकी कातने और पींजने की तैयारी करना, सूत के तारों को फिरकी पर उतार कर उसका हिसाब रखना, आने-जानेवाले पत्रों को पढ़कर छूट गई बातें याद दिलाना आदि कामों में दिन कैसे व्यतीत हो जाता था, पता भी नहीं चलता था ।