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काका कालेलकर

 

30. ‘सत्यनिष्ठा की पूजा’

आश्रम की स्थापना के दिन थे । हम कोचरब के बंगले में रहते थे । अध्यापक कर्वे अपनी संस्था के लिए चंदा जमा करने अहमदाबाद आये हुए थे । वे बापू से मिलने आश्रम में आए ।

बापू ने समस्त आश्रमवासियों को एकत्रित किया और सभी से साष्टांग प्रणाम करने के लिए कहा । फिर समझाने लगे, “गोखलेजी जब दक्षिण अफ्रिका आये थे तब मैंने उनसे पूछा था कि आपके प्रांत में सत्यनिष्ठा व्यक्ति कौन-कौन हैं ? उन्होंने कहा था कि मैं अपना नाम तो दे नहीं सकता । मैं सत्य की राह पर चलने की कोशिश अवश्य करता हूँ, पर राजनीति के मसलों पर कभी-कभी मुँह से असत्य भी निकल जाता है । मैं जिन्हें जानता हूँ उनमें तीन व्यक्ति पूर्णतः सत्यवादी हैः एक अध्यापक कर्वे, दूसरे शंकरराव लवाटे (जो शराबबंदी का कार्य करते थे) और तीसरे...’’ बापू ने आगे कहा, “सत्यनिष्ठा लोग हमारे लिए तीर्थ रूप हैं । सत्याग्रह आश्रम की स्थापना सत्य की उपासना के लिए है । ऐसे आश्रम में किसी सत्यनिष्ठ मूर्ति के पधारने का दिन हमारे लिए मंगलकारी दिन है ।”

कर्वे गदगद् हो गये । कुछ उत्तर न दे सके । इतना ही कहा कि “गाँधीजी ! आपने मुझे लज्जित कर दिया। आपके समक्ष मेरी क्या विसात है ?”