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काका कालेलकर

 

29. ‘तीन तप (युग) की स्वराज्य – सेवा’

जिस युग में हम रहते हैं वह युग हजारों वर्षों तक ‘गाँधी-युग’ के नाम से जाना जाएगा । मानवजाति को मनुष्यता की दीक्षा देनेवाले ऋषिमुनियों और पैगम्बरों की परम्परा के गाँधीजी ने अपने जीवन द्वारा मानवजाति को एक ऐसी नई प्रेरणा, श्रद्धा और दीक्षा प्रदान की है जिसे जीवन में उतारने, विकसित करने और आत्मसात् करने में मानवजाति को हजार वर्ष तक पुरुषार्थ करना पडे़गा ।

1915 के प्रारम्भ में गाँधीजी दक्षिण अफ्रिका से सदा के लिए हिंदुस्तान लौट आये । 1920 में उन्होंने समग्र देश के स्वराज्य आंदोलनों की लगाम अपने हाथों में ले ली और देश में एक जबरदस्त आंदोलन जगाया । ठीक दस वर्ष पश्चात् गाँधीजी ने लाहौर कांग्रेस अधिवेशन में पूर्ण स्वराज्य का ध्येय स्वीकार किया । आखिरी फैसला करने के लिए नमक सत्याग्राह प्रारम्भ किया और उनके बारह वर्ष बाद (1942 में) अंग्रेजों की हुकूमत को भारत छोड़कर जाने का नोटिस दे दिया । पाँच वर्ष की इस लडा़ई के अंत में भारत स्वतंत्र हुआ । ‘बारह वर्ष का एक तप युग’ के हिसाब से गाँधीजी की यह अदभुत रोमहर्षक स्वराज्य सेवा तीन तप तक चलती रही और फलीभूत हुई ।

इन तीनो तपों (युग) का इतिहास गाँधीजी जैसे अनेक राजपुरुषों के जीवन में, उनकी वाणी में और उनकी प्रवृत्तियों में तो प्रतिबिंबित हुआ ही है परन्तु इस काल के दौरान जिन छोटे-बडे़ व्यक्तियोंने इनमें भाग लिया तथा इन समग्र घटनाओं और इनके पीछे की प्रेरणा का निरीक्षण किया, उनका कर्तव्य है कि वे अपने संस्मरण लिपिबद्ध करें ।

परन्तु गाँधीजी का पूरा परिचय पाने के लिए विविध प्रकार सामग्रियाँ अपेक्षित हैं । महादेवभाई की डायरी और साप्ताहिकों में लिख तो गाँधीजी के जीवन का चरित्र उतारने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निबाहते ही हैं इसके साथ अन्य छोटे-बडे़ प्रसंगों के बारे में भी विस्तार से जानकीरी लोगों के सम्मुख आनी चाहिए ।