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काका कालेलकर

 

23. ‘धर्मयुद्ध का नियम’

गाँधीजी ने छोटी-छोटी लडा़इयाँ लड़ने में ही जींदगी बिताई है । कहा जा सकता है कि लड़ने के लिए उनका जन्म हुआ है । लेकिन उनका एक भी व्यक्ति के साथ बैर नहीं रहा ।

दक्षिण अफ्रिका में उनके विरुद्ध विचार रखनेवाले कुछ हिन्दुस्तानी लोगों का एक मंडल जनरल स्मटस से मिलने गया । अपनी बात प्रभावी ढंग से कहने की भाषा का ज्ञान और कौशल उनमें से किसी में नहीं था । उन लोगों ने गाँधीजी से ही विनती की कि आप हमारी खातिर इतना काम कर दीजिए । गाँधीजी ने सहर्ष स्वीकार किया और उन लोगों को पूर्ण संतुष्ट भी किया ।

इस प्रसंग में गाँधीजी का अजातशत्रु रूप जितना स्पष्ट हुआ है उतना ही विरोधी के इस गुण की कद्र करके उस पर संपूर्ण विश्वास सौंपने वाले उन भाइयों की श्रद्धा भी उभर कर दिखाई पड़ती है । अपनी निष्कपट खेल-भावना से गाँधीजी ने कितने ही शत्रुओं को मित्र बनाया है, कितनों को सज्जनता का पाठ पढा़या है और जहाँ द्वेष तथा छलकपट का राज्य था वहाँ धर्मयुद्ध के नियमों को मान्यता दिलवाई है ।