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काका कालेलकर

 

21. ‘चालीस हजार वापस लौटाए’

आश्रम के प्रारम्भिक दिनों की बात है । गिरजाशंकर जोशी अक्सर वहाँ आया करते थे । एक दिन बापू ने उनसे कहा, ‘आप नियमित आते हैं तो आश्रम के बालकों को संस्कृत क्यों न पढा़ दें ?’ अतः वे बालकों को संस्कृत पढा़ने लगे ।

वे फलित ज्योतिषी में अच्छी पैठ रखते थे । अहमदाबाद के बहुत से धनवानों को उनकी इस विद्या के प्रति विश्वास-भाव था । सोमालाल नामक एक पैसेवाले के मन में बापू को कुछ दान देने की भावना जगी तो जोशी के साथ विद्यालय को मकान बनवाने के लिए चालीस हजार रुपये भेजे । उन दिनों हम अहाते में तंबू बनाकर और चटाई की झोंपडी़ में रहते थे। मकान बनवाने का विचार कर रहे थे कि उससे पहले अहमदाबाद में इन्फ्लुएन्जा को प्रकोप फैल गया । रोज सौ-दो सौ की मौत होने लगी और चारों ओर हाहाकार मच गया । बापू ने जोशी से कहा, ‘इस वर्ष तो हम मकान नहीं बनवायेंगे और विद्यालय का मकान भी नहीं बन सकेगा इसलिए सोमालालभाई के दिये पैसे वापस ले जाइए ।’ जोशी बोले, ‘उन्होंने पैसे वापस नहीं माँगे हैं ।’ बापू ने कहा, ‘उससे क्या होता है ? जिस काम के लिए दिए वह, काम अभी होनेवाला नहीं, तो फिर यह पैसा किसलिए संभालें ?’ जोशी फिर बोले, ‘अभी नहीं तो भविष्य में कभी, छात्रालय बनवायेंगे तो सही ? उस वक्त पैसा काम आ जायेगा ।’ बापू का उत्तर था, ‘हाँ, परन्तु जब बनवाने का प्रसंग आयेगा तब कोई पैसा देने वाला भी मिल जायेगा ।’ जोशी ने जाकर सोमालालभाई से सारी बात बताई । उन्होंने कहा, मैंने दिया सो दिया, वापस नहीं लूँगा ।’