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उमाशंकर जोशी

 

19. ‘महात्मा न कहो’

मुंबई के एक्सल्सियर थियेटर में एक सभा का आयोजन, मलबार संकट निवारण के हेतु किया गया था । गाँधीजी भी उस सभा में उपस्थित थे । श्री जयकर का भाषण हुआ और गाँधीजी को ज्ञात हो गया कि सभा उनका सम्मान करने के लिए भी रखी गयी है । विभिन्न राजनीतिक दलों तथा विशिष्ट जातियों का प्रतिनिधित्व करते हुए, सज्जन एक के बाद एक खडे़ होकर गाँधीजी के प्रति अपना स्नेह-आदर प्रकट करने लगे । श्री जमनादास द्वारिकादास की बारी आई । वे भी गाँधीजी के प्रति आदर और प्रेम-भाव में किसी से पीछे नहीं थे, इसी बारे में वे कह रहे थे कि सभा में से किसीने आवाज दीः ‘महात्माजी कहिए, गाँधीजी नहीं ।’

जमनादासजी ने सरल भाव से समझाया कि गाँधीजी को महात्मा शब्द रुचता नहीं है, यह उन्होंने स्वयं मुझे बताया है । अतः मैं उनका दिल दुखाना नहीं चाहता ।

उन्होंने अपना भाषण आगे शुरू किया, फिर पुकार आयी। दोबारा उन्होंने खुलासा किया ।

अन्य सभी के भाषण हुए । अंत में गाँधीजी के बोलने का समय आया । उन्होंने बिंधे हृदय से कहा, ‘दो-तीन भाईयों ने जमनादासभाई तथा सभा के प्रति अविनय किया है । भाई जमनादास ने जो कहा वह सच है । ‘महात्मा’ के नाम से अनेक कपट के काम हुए हैं । मुझे ‘महात्मा’ शब्द से बदबू आयी है । जब कोई आग्रह करता है कि सभी मुझे ‘महात्मा’ कहें तब तो मैं बहुत बेचैन हो जाता हूँ । जितना मैं ‘महात्मा’ शब्द के उपयोग की मनाही करता हूँ उतना ही अधिक उपयोग होता है । यह मैं जानता हूँ, इसलिए केवल जीभ से कहकर बैठ जाना मेरे लिए काफी नहीं होता । आश्रम में तो मेरे या किसी और के समक्ष इस शब्द का प्रयोग न करने की आज्ञा है । भाई जमनादास ने तो मेरे लिए बडे़ प्रशंसात्मक शब्दों का प्रयोग किया, पर यदि उन्होंने कहा होता कि गाँधी जैसे दुखकारक आदमी कोई नहीं है, तो भी उन्हें रोकने का किसी को अधिकार नही ।’

उनके इतना कहते ही सामने की गैलरी में से एक भाई खडे़ हुए, हाथ जोड़ प्रणाम करके सिर झुकाया । गाँधीजी ने कहा, ‘इतना काफी है । लेकिन अभी और दो-एक भाई हैं, वे माँफी नहीं माँगेंगे ?

अन्य दो व्यक्ति उठे और माँफी । गांधीजी आगे बोलने लगे । तब तक एक और भाई भी खडे़ हुए और माफी माँगी । गाँधीजी ने शांति का अनुभव किया, बोलेः ‘आपने जमनादासभाई का अनादर किया, इससे मुझे अतिशय दुख हुआ । लेकिन आपने विनयपूर्वक क्षमा माँग ली तो यह दुख सुखरूप बन गया । इन माफी माँगनेवालों का तो भला होगा ही, पर हम सब जो इस दृश्य के साक्षी हैं, का भी भला होगा ।’