उमाशंकर जोशी
18. ‘दोनों चुपचाप बैठे रहे’ |
बापू यरवडा जेल में थे तब बा उनसे मुलाकात करने आई । निश्चित समय पर जेल-अधिकारी की उपस्थिति में उनकी मुलाकात का बंदोबस्त किया गया । बा-बापू एक-दूसरे के हाल-चाल पूछने लगे, तो जेल अधिकारी को लगा कि इन पूज्य व्यक्तियों के मिलने के समय यदि मैं यही खडा़ रहूँगा तो वे खुलकर बातचीत नहीं कर सकेंगे । अतः थोडा़ इधर-उधर हो जाऊँ । यह सोचकर वे दूर तक टहलने चले गये । जेल में मुलाकात का समय था, आधा घंटा। समय पूरा हुआ तो जेल अधिकारी हँसते हुए वापस लौटे । उन्होंने बापू से पूछाः ‘आपकी बातचीत अब तक पूरी हो गई होगी ।’ गाँधीजीः ‘बातचीत ? आपके समक्ष एक-दूसरे का हाल-चाल पूछा, बस वही । आपके जाने के बाद हम दोनों ने एक शब्द तक का उच्चारण नहीं किया ।’ जेल अधिकारीः ‘ऐसा क्यों, बापू ?’ गाँधीजीः ‘आप जेल के नियम तो जानते है । जेल अधिकारी की गैरहाजिरी में जेल का कैदी मुलाकाती के साथ बात नहीं कर सकता । आप बैठे थे तब तक खबर पूछी, पर आपके जाने के बाद हम दोनों शांत बैठे रहे है ।’
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