| | |

उमाशंकर जोशी

 

12. ‘बचत पर नजर’

यरवडा जेल में गाँधीजी के कपडे़ उनके साथी शंकरलालभाई धोते थे । एक दिन गाँधीजी ने धीरे से उनसे कहा, ‘कपडे़ धोने का काम रहने दो, में धो लूँगा ।’

शंकरलालभाई ने पूछाः ‘कपडे़ ठीक नहीं धुल रहे हैं क्या ?’ गाँधीजी ने संतोष से कहाः ‘कपडे़ तो बराबर धुलते हैं, पर मुझे लगता है कि साबुन कुछ ज्यादा लग जाता है । मैं इतना साबुन इससे दुगुने दिन चला लूँ ।’

शंकरलालभाई ने कहाः ‘अब किफायत से इस्तेमाल करुँगा ।’ उन्हें लगता था कि साबुन भले ही थोडा़ ज्यादा लगे पर कपड़ा बराबर स्वच्छ होना चाहिए। अब उन्हें मितव्ययिता की दृष्टि मिली ।

एक सुबह गाँधीजी कहने लगेः ‘शंकरलाल, आज सिगडी़ नहीं सुलगाना । पानी गरम नहीं करना है ।’

शंकरलालभाई ने पूछाः ‘क्यों ?’

गाँधीजी ने कहाः ‘रात को कमरे में लालटेन रहती है । मुझे विचार आया कि उस पर पानी भर कर मग रखें तो सुबह तक पानी गर्म हो जायेगा। प्रयोग सफल हुआ । पानी मेरे जितना गर्म हो गया है ।’

शंकरलालभाई को बुरा लगा । वे बोले, ‘भोर में जल्दी उठकर सिगडी़ सुलगाने में मुझे श्रम पड़ रहा होगा, यह मान कर तो आप ऐसा नहीं कर रहे हैं ना ? मुझे लगता है मैं आपको संतोष प्रदान नहीं कर सकता ।’

गाँधीजी ने कहाः ‘आप तो अच्छी तरह तैयार करते रहे हैं । पर यह तो एक प्रयोग करके देखा कि इस तरह सुलगते लालटेन पर पानी गर्म कर लें तो कैसा रहे ? इतना कोयला बच गया । इसमें बुरा मानने जैसी कोई बात नहीं है ।’