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मो. क. गाँधी
 

1. तिरस्कार

इस संसार में किसी का भी तिरस्कार करने में स्वयं को असमर्थ पाता हूँ । ईश्वर-परायणता की खातिर, बहुत संयम रखकर चालिस वर्ष से मैंने किसी से भी द्वेष करना छोड़ दिया है । मैं जानता हूँ कि यह बहुत बडा़ दावा है, फिर भी विनम्रता से मैं इसे सबके समक्ष कर रहा हूँ । लेकिन जहाँ-जहाँ दुष्टकर्म होते हों, वहाँ-वहाँ मैं उसे धिक्कारने में तो समर्थ हूँ ही और धिक्कारता भी हूँ । अंग्रेजों ने भारत में जो शासनप्रणाली अपनाई, उसे मैं धिक्कारता हूँ, उससे घृणा करता हूँ । अंग्रेज-वर्ग भारत में जो जबरदस्ती कर रहा है उसका मैं पूर्णतः द्वेषी हूँ । भारत का निर्दयता से शोषण करने की उनकी नीति को मैं हृदय से धिक्कारता हूँ । इसी प्रकार जिस घृणित प्रथा के करोडो़ हिंदू जवाबदार बन गये हैं उस अस्पृश्यता की प्रथा को भी मैं धिक्कारता हूँ । परन्तु मैं नहीं धिक्कारता सरजोरी करनेवाले अंग्रेज को और न ही हिंदू को । मुझसे जो कुछ संभव हो सकता है उन उपायों द्वारा मैं उन्हें सुधारने का प्रयास करता हूँ।