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द्वितीय गोलमेज परिषद और 'ख्रिसमस गिफ्ट'

गांधी-इरविन समझौता हो चुका था। द्वितीय गोलमेल परिषद में भाग लेने के लिए गांधीजी 29 अगस्त 1931 को लंदन के लिए रवाना हुए। वे परिषद में भाग लेने वाले कांग्रेस के एकमात्र प्रतिनिधी थे। गांधीजी ने खुद कहा था, "इस परिषद से खाली हाथ वापस लौटने की पूरी संभवना है।" वे सही भी थे। 12 सितंबर 1931 को वहाँ पहुँचने के बाद उनके हाथ निराशी ही लगी। बावजूद इसके उनकी यात्रा वहाँ के लोगों में चर्चा का विषय बनी। गांधीजी के बारे में वहाँ कहानियाँ कही जाने लगीं। ब्रिटिश नागरीकों के लिए यह बढ़िया बात थी कि उनके बीच एक सादा, ईमानदार, सत्यनिष्ठ व्यक्ति आया था। गांधीजी के व्यक्तित्व ने सभी को प्रभावित किया।

लंदन पहुँचने के बाद गांधीजी वहाँ की मजदेर बस्ती ईस्ट एंड के किंग्सले हॉल में ठहरे। अपनी जन-सेवा और सरल स्वभाव से गांधीजी ने वहाँ के युवा और बुजुर्ग वर्ग का दिल जीत लिया। वे सबके चहेते बन गये। उनकी सहजता, दयालुता ने देश और राष्ट्र की सीमाओं को तोड़ दिया। जब लोग उनसे उनके वत्रों के बारे में कहते तो उनका जवाब होता, "आप लोग चार वत्र पहन सकते हो, मैं चार वत्र नहीं पहन सकता।"

गांधीजी की इस इंग्लैंड यात्रा में एक सुखद घटना भी हुई। वह थी लैंकशायर के सूती मिल मजदूरों से उनकी भेंट। भारत में विदेशी वत्रों के बहिष्कार की सीधी मार इन लोगों पर पड़ी थी और कई लाख मजदूर बेकार हो गये थे। सभी मजदूर उनसे बड़ी विनम्रता व प्रेम से मिले। एक बेकार मजदूर ने तो यहाँ तक कहा, "मैं भी एक बेकार मजदूर हूँ, लेकिन यदि मैं भारत में होता तो वही करता जो गांधीजी ने किया।"

लौटते समय गांधीजी स्वित्झर्लैंड में रोमन रोलांड से मिलने गये। वहाँ की फासिस्ट की एक सभा में उन्होंने यह समझाया कि 'ईश्वर सत्य है` की अपेक्षा 'सत्य ही ईश्वर है` की धारणा ज्यादा बलवान है।

जिस दिन गांधीजी बंबई पहुँचे, उस दिन उन्होंने कहा था, "मेरे तीन महिने की इंग्लैंड और यूरोप की यात्रा पूरी तरह बेकार नहीं गई। मैंने अनूभव किया कि पूर्वी देश पूर्वी देश है और पश्चिमी देश पश्चिमी हैं। दोनों देशों के लोगों के व्यवहार में काफी समानताएँ हैं। इससे फर्क नहीं पड़ता कि कौन किस वातावरण में रहा है ? सभी के भीतर विश्वास और प्रेम का फूल अपनी सुगंध बिखेर रहा है।"

गांधीजी को जल्द ही अनुभव हुआ कि 'गांधी-इरविन` समझौते को अंग्रेज सरकार ने भंग कर दिया है। उसे रद्दी की टोकरी में डाल दिया गया है। नये वाइसराय लॉर्ड विलिंग्डन ने अपने नये काले कानून से कई विषम परिस्थितियाँ लाकर खड़ी कर दी थीं। लोगों को गिरफ्तार करना उन पर गोली चलाना सामान्य बात हो गयी थी। गांधीजी को बंबई में रिसीव करने गये कांग्रेसी नेता जवाहरलाल नेहरू को रास्ते में ही गिरफ्तार कर लिया गया। 28 दिसंबर 1931 को जब गांधीजी बंबई पहुँचे तो उन्होंने कहा था- "मैं ऐसा समझता हूँ कि ये आर्डिनेस हमारे इसाई वाइसराय लॉर्ड विलिंग्डन साहब की ओर से हमें 'ख्रिसमस का उपहारृ है। एक सप्ताह बाद गांधीजी को भी गिरफ्तार कर यरवदा जेल में बंद कर दिया गया। इस सजा के लिए अदालत तक मामला नहीं ले जाया गया।

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