60. वह दूर है, फिर भी निरन्तर पास है । |
गांधीजी का उपवास आरम्भ हुआ । नासिक-जेल में प्यारेलालजी बीमार थे । वे कहते थेः “बापूजी के सभी उपवासों के समय मैं उनके पास रहा हूँ । एनिमा कितना देना है, पानी कितना और कैसे देना है, सब मुझे मालूम है । परन्तु इस समय मैं उनके पास नहीं हूँ ।” गांधीजी से पत्र आयाः ‘‘उपनिषद् में कहा है, ‘तददूरे तद्वंन्तिके’-आत्मा दूर भी है, पास भी है । दूर रहनेवाली आत्मा निकट भी है, ऐसा अनुभव ऐसे ही प्रसंगों में करना होता है । न ?” |