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खण्ड 4 :
प्रेम-सिन्धु

54. बच्चे का काम पहले

महात्माजी उस समय महाबलेश्वर में थे । उनसे मिलने के लिए दिल्ली से देवदासभाई भी बाल-बच्चों के साथ आये थे । गांधीजी के चारों ओर सारी दुनिया के कई मसले थे । नेता मिलने आते थे । संसारभर के पत्रकार आते थे । चर्चा चलती थी । पत्र-व्यवहार भी रहता था ।

वह देखो, देवदासभाई का बच्चा गणित का सवाल हल करने में लीन है । लेकिन उससे हल नहीं हो रहा है । वह लड़का कइयों के पास जाकर पूछ रहा है कि “यह सवाल कैसे हल करें, आप बतायेंगे ?” लेकिन इस बच्चे की प्रार्थना की ओर कौन ध्यान देगा ? आखिर वह नन्हा बच्चा अपने दादाजी के पास गया और बोलाः “बापू, इतने लोग हैं, पर कोई मुझे सवाल हल करके नहीं देता है । आप बतायेंगे ?”  

बापू साप्ताहिक हरिजन के लिए लेख लिखने में मशगूल थे । परन्तु उस बालब्रह्मा को वे दूर कैसे करते ? प्रेम से बोलेः “आ, मेरे पास । तुझे क्या चाहिए ? उन लोगों के पास बहुत काम रहते हैं । तूने पहले ही मेरे पास आकर पूछा क्यों नहीं ? अब कहीं कोई दिक्कत आ जाय, तो सीधे मेरे पास आ जाना । खैर ! देखूँ तो, तेरा सवाल ?”

महत्त्वपूर्ण लेख लिखने में तल्लीन बापू अब नाती का कापी लेकर उसे उसका सवाल समझाने में लग गये ।