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खण्ड 4 :
प्रेम-सिन्धु

53. मगनलाल गांधी

महात्माजी की जीवन-साधना में संसार के हजारों छोटे-बडे़ लोग शामिल हुए थे । परन्तु मगनलालभाई तो सेवकों के मुकुटमणि थे । ज्यों ही महात्माजी के मन में कोई विचार आता, त्यों ही उसे प्रत्यक्ष कार्यरूप में परिणत करने के लिए मगनभाई अपनी सारी अन्तबह्मि शक्ति लगा देते थे । सन् 1928 में उनका देहान्त हुआ । ‘मंगल मंदिर खोलो, दयामय’-इस भजन को दुहराते, गुनगुनाते वे ईश्वर के पास गये ।

महात्माजी का दुःख असीम था । बोलेः “उनकी मृत्यु से मैं विधवा हो गया ।”