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खण्ड 4 :
प्रेम-सिन्धु

52. ‘मैं बेसहारा हो गया’

गांधीजी सेवाग्राम में थे । जमनालालजी अन्य सारे काम छोड़कर गो-सेवा के लिए जीवन समर्पित करने का विचार कर रहे थे । उस विचार ने उन्हें पागल बना रखा था । परन्तु जमनालालजी बीमार हुए । डाक्टर दौडे़ आये । सेवाग्राम से महात्माजी आये । जमनालालजी ठीक नहीं हुए । ईश्वर के पास चले गये । विनोबाजी ने कहाः “उनके मन में जो विचार उफन रहा था, वह देह में समा नहीं सका । देह तोड़कर वे बाहर निकल गये ।” गांधीजी बहुत दुःखी हुए । वास्तव में वे थे स्थितप्रज्ञ । परन्तु गांधीजी के जीवन में करूण मानवता थी । दिन बीत गया । लेकिन उस रात गांधीजी को नींद नहीं आ रही थी । बोलेः “मैं अब बेसहारा हो गया, मेरा भार कौन सँभालेगा ?”