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खण्ड 4 :
प्रेम-सिन्धु

50. छोटे सेवकों की याद

गांधीजी बडे़ संजीदा व्यक्ति थे । उनकी स्मरण-शक्ति बडी़ तेज थी । हजारों छोटे-बडे़ सेवकों की उन्हें याद रहती थी । स्मृति एक आध्यात्मिक गुण है, सात्त्विक गुण है, अर्जुन गीता के अन्त में कहता हैः “मोह गया, स्मृति प्राप्त हुई ।’’ स्मृति का मतलब है दक्षता । ‘दक्ष ही मोक्ष पाता है ।’ बावले को, बार-बार भूलनेवाले को सिद्धि कैसे मिलेगी ?

महात्माजी बारडोली से वर्धा जा रहे थे । अमलनेर स्टेशन पर उन्हें आहार दिया गया । शाम हुई, गाडीं खुली । एरंडोल स्टेशन भी गया । और अगले चावलखेडे़ स्टेशन पर गाडी़ रूकी । आसपास के देहातों से सैकडों किसान आये थे । गांधीजी के डिब्बे के पास वे जमा हुए । गांधीजी खिड़की के पास शान्ति से बैठे थे ।

हरिजनों के वास्ते’-कहकर उन्होंने अपना हाथ फैलाया । और प्रत्येक किसान अपने घर से इसी हेतु लाया गया आना-दो पैसा राष्ट्रपिता के हाथ पर रखता गया । हर व्यक्ति पैसा रखता, प्रणाम करता, दूर हो जाता । गांधीजी को समाधान हुआ । गाडी़ चल पडी़ । किसानों ने जय-जयकार किया । महादेवभाई और प्यारेलालजी पैसे गिनने में लगे ।

“यह कैन-सा गाँव था ?” गांधीजी ने पूछा ।

“एरंडोल के पास के ये सब गाँव हैं । खाली हाथ एक भी नहीं आया था ।” किसान कहा ।

“एरंडोल ? ठीक है । शंकरभाऊ काबरे का गाँव । शंकरभाऊ वहाँ का निरहंकारी सेवक ।” एरंडोल का नाम सुनते ही गांधीजी को शंकरभाऊ का स्मरण हुआ । उनकी निरहंकारता का उन्होंने जिक्र किया । मैं उसी डिब्बे में था । दूर-दूर के सेवकों की उनकी यह याद देखकर मेरा हृदय भर आया । सेवकों की ऐसी कद्र करनेवाले को सेवकों की कभी कमी नहीं पड़ती । गांधीजी ने क्या यों ही देशभर में हजारों-व्यक्तियों को खडा़ किया था ? सहृदय मानवता के वे भण्डार थे ।