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खण्ड 4 :
प्रेम-सिन्धु

49. ‘आप ही की गाडी़ में जाऊँगा’

गोलमेज-परिषद् के लिए गांधीजी लन्दन गये थे । तब की अनेक कहानियाँ हैं । एक दिन गिल्ड हाल में सभा थी । ‘स्वेच्छा से लिया हुआ गरीबी का व्रत’-इस विषय पर गांधीजी बोलनेवाले थे । मिस मांड रायडन नामक महिला गांधीजी को अपनी मोटर में सभा-स्थान पर ले गयीं । उस महिला के पास डी. डी. की पदवी थी ।

मोटर में जाते समय गांधीजी ने पूछाः “डी. डी. का क्या अर्थ है ?”

रायडन बहन ने कहाः “उसका अर्थ यह है डाक्टरेट आफ डिविनिटी (ईश्वर-शास्त्र में पारंगत) । ग्लासो-विश्वविद्दालय ने मुझे यह पदवी दी है ।”

“तो ईश्वर के विषय में आपको सब कुछ मालूम होगा ।” गांधीजी ने मुस्कराते हुए पूछा । सभा स्थान आ गया ?

गांधीजी ने कहाः “सभा के बाद आप की ही गाडीं से लौटूँगा खयाल रखियेगा ।”

उस बहन को वह सन्मान प्रतीत हुआ । कइयों की इच्छा होती थी कि गांधीजी उनकी मोटर में बैठकर जायँ । संसार के एक महापुरुष को अपनी मोटर में बैठने का सदभाग्य पाने के लिए कौन उत्सुक नहीं होगा ?

सभा समाप्त हुई । सभा-स्थान के बाहर भारी भीड़ थी । तिस पर वर्षा भी हो रही थी । वहाँ सैकडो़ मोटरें खडी़ थीं। उस बहन को अपनी मोटर जल्द मिल नहीं रही थी । गांधीजी वर्षा में खड़े थे । चारों ओर अनेक मोटरें थीं । महात्माजी को ले जाने को सुयोग पाने की वे सब मोटरें उत्सुकता से राह देख रही थीं । हवा में बेहद ठंडक आ गयी । बापूजी के बदन पर गरम कपडा़ नहीं था । वह बहन शरमायी ।

रायडन बहन ने कहाः “गांधीजी, आप किसी मोटर से जाइये । मुझे अपनी गीडी़ मिल नहीं रही है । आप रुकिये नहीं ।”

“लेकिन आपकी गाडी़ मिलने तक मैं रुकूँगा ।” गांधीजी शान्ति से बोले ।

उस बहन को ऐसा आनन्द हुआ, मानो राजमुकुट मिल गया हो । भीड़ कम हुई । मोटर मिल गयी । बापू उसी मोटर से गये ! उस बहन को बडा़ समाधान मिला !