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खण्ड 4 :
प्रेम-सिन्धु

48. आजाद भारत का पहला राष्ट्रपति कौन ?

भारत का नया संविधान बन रहा था । शीघ्र ही वह पूरा हो गया । पण्डित जवाहरलाल बडे़ अधीर हो रहे थे । संविधान के स्वीकृत होते ही वे भारत को ‘लोकतांत्रिक राष्ट्र’ घोषित करनेवाले थे ।

राष्ट्रपिता जीवित नहीं थे । परन्तु वे जानते थे कि भारत का संविधान कभी-न-कभी पूरा होगा और भारत लोकतान्त्रिक सार्वभीम राष्ट्र बनेगा । लोकतान्त्रिक राष्ट्र में नये संविधान के अनुसार कोई अध्यक्ष भी चुना जायगा । स्वतन्त्र भारत का पहला अध्यक्ष ? किसे मिलेगा वह मान ? किसीको भी मिले ।

इस राष्ट्र का प्रथम अध्यक्ष कौन हो-इस बारे में गांधीजी क्या सोचते थे ?

उस दिन दिल्ली की भंगी-बस्ती में सभा थी । हरिजन-बस्ती में आज सायं-प्रार्थना होगी, वहीं प्रार्थनोत्तर प्रवचन होगा । उस प्रवचन का उनका वह महान् उदगार तुम्हें सुनाऊँ ? दिल्ली-डायरी में वह है । महात्माजी बोलेः “मेरी तमन्ना है कि इस देश का पहला अध्यक्ष कोई भंगी बालिका बने ।”

‘पददलित लोग आयें’, इसकी यह कैसी छटपटाहट ! वह वचन पढ़कर मुझे मुहम्मद पैगम्बर का इसी तरह का उदगार याद आता है । एक ईरानी गुलाम को पैगम्बर ने गुलामी से मुक्त किया और कहाः “मैं चाहता हूँ कि मेरे बाद का खलीफा यह बने ।” जो कल तक गुलाम था, वह सारे मुसलमानों का प्रमुख बने-यह पैगम्बर की इच्छा थी, तो भंगी बालिका भारत की प्रथम अध्यक्षा बने-यह गांधीजी की चाह थी । महान् महान् ही होते हैं । वे कहीं भी क्यों न जनमें ।